संदेश
कलम - सजल - संजय राजभर "समित"
एक दीप है कलम।। अस्त्र शस्त्र है कलम।। काल का चित्रण कर। वर्तमान है कलम।। कागजों पर चलता। अक्षय कोष है कलम।। जीवन सार …
प्यार की दस्तक - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
आहिस्ता आहिस्ता जिंदगी निखर गई, जुस्तजू मैं तेरी मैं बस खो गई। दिल की राहों में जो दी तूने दस्तक, मन मयूर नाच उठा हो मद मस्त। चाँदनी र…
कृपा मातु कात्यायनी - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सकल कामना पूर्ण हो, रोग शोक अवसान। कृपा मातु कात्यायनी, पा सपूत वरदान।।१।। ऋषि कात्यायन आत्मजा, कात्यायनि जगदम्ब। शान्ति सुखद जीवन मि…
देवो के देव महादेव - कविता - उमाशंकर मिश्र
गले मे सांप जिसके मस्तक पर चाँद जिसके सुंदर जटाओ मे गंगा जिसकी जिसके बाजू पर डमरु लटके है वही प्यारे शंकर हमारे दिल मे बैठे है। किसी क…
सच्चे मित्र की पहचान - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
तुलसीकृत रामचरितमानस की एक चौपाई जो कि ज्यादातर लोग जानते होंगे धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपति काल परखिए चारी। यह पूर्णतया सत्य है कि …
कर्मगति - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
राजा हो रंक कर्म गति से सबको ही दो चार होना पड़ता है। कर्मों के हिसाब से फल भोगना ही पड़़ता है, कौन बच सका है कर्मगति के प्रभाव से, जिस…
देखा था जब तुझे - ग़ज़ल - समुन्द्र सिंह पंवार
दिल ही दिल में तुम पर मर मिटे थे हम, देखा था जब तुम्हें सपनों के गांवों में। दिल में तब एक तमन्ना हुई कि तुम से, मिल ही सकें कहीं बहार…
प्रेम हृदय से - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
प्रेम ह्रदय है अविरल धार जब-जब मिलत मन का उद्धार, नहीं कोई है तन के पास एक आहट है बस चुपचाप। धीरे-धीरे चुपके-चुपके रात रंजनी आई पास,…
क्या कभी ऐसा होगा - कविता - चीनू गिरि
क्या कभी ऐसा होगा, मैं तुम्हें सोचू और तुम आ जाओ! क्या कभी ऐसा होगा, मैं तुम्हें सोचू और तुम्हें खबर हो जाएं! क्या कभी ऐसा होगा, तुम्ह…
पहली मुहब्बत - संस्मरण - संजय राजभर "समित"
सन दो हजार बारह में मैं सेलम (तमिलनाडु) में था। घर से बड़े भाई का फोन आया "तेरी शादी की लगन तय हो गई है। माँ तेरी शादी के लिए बहु…
जग जननी माँ जय हो - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
शिवा भवानी हो जग कल्याणी, असुर विनाशिनि नवदुर्गे जय हो। शुभ शैलपुत्री जय अम्बे गौरी, जय जय जग जननी माँ जय हो।।१।।…
जयति जय माँ - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
जयति जय माँ कात्यायनि, जयति जय जय दुर्गमा। हे! मातु हम तो शिशु तुम्हारे, अब मेरा कल्याण कर माँ। दुनिया के जननी तू मैया, तुझ पर अर्…
एशिया के प्रकाश - कविता - प्रशान्त "अरहत"
महामाया के राज दुलारे, ज्ञान के आकाश हैं वो। सब कहें है बुद्ध जिनको, एशिया के प्रकाश हैं वो। ध्यान से निर्वाण तक का मार्ग बतलाया है…
व्यथा धरा की - तपी छंद - संजय राजभर "समित"
चीख रही धरती। कौन सुने विनती।। दोहन शाश्वत है। जीवन आफत है।। बाढ़ कभी बरपा। लांछन ही पनपा।। मौन रहूँ कितना! जख्म नही सहना।। मान…
प्रतिभा - कविता - सन्तोष ताकर "खाखी"
खुद को आईने में देखकर बताया कर, तू क्या चीज है अहसास जताया कर। मिट्टी की बनी सिर्फ एक मूरत नहीं हैं तू, प्रतिभा भरी हैं कुट-कुट कर ये…
महबूबा से मुलाकात हो गई - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
दिन डूब गया स्याह रात हो गई! शहर में आज बरसात हो गई! बारिश ने हवाओं से कुछ कहा, दिल से दिल की बात हो गई! यादों के जब खुले झरोखे, महबूब…
धूप - कविता - मयंक कर्दम
सोने जैसा रंग है मेरा, अनेक रंग में दिखलाती हूँ। सुबह शाम दौड़ती रहती, आज तुमको मैं बतलाती हूँ।। पंछी भी झूम उठते, जब मैं खिल-खिलाती…
रिश्तों का बदलता स्वरूप - निबंध - देवासी जगदीश
आज की आधुनिकता हमें निरंतर चारों ओर से घेर रही है, चाहे रहन-सहन का ढंग हो, आदर सत्कार का रवैया हो, चाहे बातचीत करने का लहज़ा हो, सभी त…
अनन्त चाहत जीवन में - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
सब कुछ पाने की चाहत मन में , तन मन जीवन नित अर्पित जग में , बस सजीं मंजिलें ख्वाव चमन में, पड़ा चाहत में खो उदास मन। धन …
नारी शक्ति - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
नारी शक्ति, साहस की पहचान। ये ही, असीमित स्रोत है।। वेदना संवेदना के सागर में। न केवल, व्यथित ह्रदय की पीड़ा।। नारी ही तो, बन जननी। देत…
जय जवान - कविता - अनिल भूषण मिश्र
हे अरिमार्ग के रोधक सतत सुरक्षा के बोधक। तुम धीर वीर निर्भीक कहलाते हो मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राण लगाते हो। गर्मी ठण्डी हो या बर…
खुशियाँ हों या ग़म - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
मैं तुममें, तुम मुझमें प्रियतम इक दूजे को क्यों ढूँढें हम रोज़ मिलेंगे उसी तरह हम पंखुड़ियों से जैसे शबनम हम -तुम आपस में बाँटें…
पेड़ - कविता - मास्टर भोमाराम बोस
पेड़ हमारे जीवन दाता, पेड़ों से होती बरसात। शीत ताप स्वयं सहते, हमें ठंडी हवा देते। फूल फलों से लदे पेड़, भूखे को भोजन देते पेड़। पक्षियों…
समय नही है - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
इंसान का सोच इतना ओछा हो गया है और वेझिझक हो भयभीत परिस्तिथि में कनी काट कर आगे बढ़ जाता है और सहज तरीके से कहने लगता है यार समय नही है…
पत्ता गोभी - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
मिरे दर पर हुजूम में, साथी कोई पुराना आया हैं। अजीजों की बज़्म में, क़त्ल का फ़रमान आया हैं। मोहब्बत के खेल में, जाम तिरा ख़्याल आया हैं। …
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