संदेश
मंज़िल पर हूँ - नज़्म - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
मंज़िल पर हूँ, पैरो को अब और चलने की ज़रूरत ना रही, दिल में इस तरह से बसे हो कि मन्दिर में तेरी मूरत ना रही। फ़लक़, पंछी, ये ख़ामोश कहकशाँ,…
अक्टूबर है जी जान लगा दो - नज़्म - प्रशान्त 'अरहत'
ये क्या है मौसम? बहाना कैसा? कभी तुम गर्मी कभी तुम सर्दी बता रहे हो! या काम से जी चुरा रहे हो? तुम लक्ष्य ठानो जो एक मन में तो उसको प…
फ़र्क़ तो पड़ता है - नज़्म - मनोरंजन भारती
तेरा साथ ना होना तुमसे बात ना होना, बेज़ुबाँ हर रातों में कच्ची नींद में सोना, मन बाबरा किसी भी ओर चल पड़ता है, तेरा संग होना ना होना…
मुहब्बत एक-तरफ़ा थी - नज़्म - प्रशान्त 'अरहत'
बहुत बरसों बरस पहले मेरे कॉलेज कि इक लड़की हमारे पास आई थी मेरा बस नाम पूछा था। मैं ठहरा गाँव का लड़का उसे फिर आँख भर देखा बहुत नादान …
तन्हा - नज़्म - अभिषेक द्विवेदी 'नीरज'
चुप-चुप सा रहता हूँ, तन्हाई में जीता हूँ, ज़िंदगी बसर हो रही है यूँ ही तन्हा, फिर भी रात सपनों में खोया रहता हूँ। ज़माना रूप बदलता रहा म…
मेरा मुस्तक़बिल नज़र आता हैं - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
सुनकर ये मधुर धक-धक की आवाज़ ये सच मन में जागा है, हो न हो दिल रुपी सरिता में तेरे नाम का कंकड तसव्वुर ने फेंका है। तुम धरती पर मूर्त क…
मौत का तांडव - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला
दिख रहा मौत का कैसा तांडव हाय ये किसने क़यामत ढाया। बेबसी क्यूँ कर दी कुदरत तूने, हाय कैसा ये कैसा क़हर छाया। मौत की चीखें सुनी हैं हर …
मोगरे का फूल - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
चश्म-ओ-गोश के तट पे चिड़िया चहचहाने आई, रिज़्क़ लाज़िम हैं, उठ ना, बख़्त कहता है। अब तक ना सजी मिरी सुब्ह-ओ-जीस्त, बग़ैर तिरे मिरा आलम तन्…
बुझते चराग़ों को शरारा मिल गया - नज़्म - श्याम निर्मोही
बुझते चराग़ों को शरारा मिल गया, ज़िन्दगी को जैसे गुज़ारा मिल गया। डूबना अभी बाकी है उनकी मुहब्बत में, झील सी आँखों से इशारा मिल गया। क…
मुक़म्मल जहान हैं - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
मेहमाँ तिरे आने से जीवन में आया मिठास हैं, ये शादी का लड्डू जीवन में लाया उल्लास हैं। कहते हैं ये लड्डू जो खाए वो पछताए होत हैं, तुझ स…
ठंड भी सुनती कहाँ - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला
उफ़ ये कम्प लाती सर्द का, अलग अलग मिज़ाज है। बेबस ग़रीबो के लिए तो, बस सज़ा जैसा आज है। कुछ वाहहह वालों के लिए, तो मौज़ का आग़ाज़ है। कुछ के …
हाथ मलता रहा चाँद - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला
रात भर हाथ मलता रहा चाँद है। चाँदनी रूठकर गुम कहीं हो गयी। सारे तारे सितारे लगे खोजने। रातरानी छिपी या कहीं खो गयी। मीठे मीठे मोहब…
बेमौल माज़ी - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
हम रोये बहुत, नैनों को ना सूखने दिया कभी, इस काफ़िर दिल ने तुझकों ना भूलने दिया कभी। शामों की सुर्ख़ फ़ज़ाओं में तुझसे मुख़ातिब हुआ कभी, मा…
कर्मवीर मास्टर - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
मिरी मसर्रतों से गुफ्तगूं कर ज़ीस्त ने कुछ यूँ फ़रमाया हैं, ज्ञानमन्दिर में आकर हयात ने हयात को गले लगाया हैं। सोहबत में तेरी ए पाठशाला …
तू सज-धज के नज़र आती हैं - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
शफ़क़ की पैरहन ओढ़ें शाम जब मिरे मस्कन आती हैं, सुर्ख़ मनाज़िर में तू दुल्हन बनी सज-धज के नज़र आती हैं।। तन्हा रात हैं, शोख़ जज़्बातों के क़ाफ़ि…
क़ुर्बत - नज़्म - अंकित राज
मेरी आँखों में झिलमिलाती वो, मेरे ख़्वाबों में रोज़ आती वो... फिर गले से मुझे लगाती वो, मेरी बाहों में मुस्कुराती वो... च…
ऐ! ज़िंदगी - नज़्म - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ऐ! ज़िंदगी तेरे लिए हमने बहुत हैं दुःख सिंये। ऐ! आशिकी तेरे लिए आँख ने आँसू पिये। बे मुरब्बत ज़िंदगी तू रूठती मुझसे रही। बेरहम ये जख़्म स…
पत्ता गोभी - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
मिरे दर पर हुजूम में, साथी कोई पुराना आया हैं। अजीजों की बज़्म में, क़त्ल का फ़रमान आया हैं। मोहब्बत के खेल में, जाम तिरा ख़्याल आया हैं। …
कोई बात दबी हैं - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
तेरे नूरानी बदन पे कसक कोई सजी हैं, तुझसे मिलकर कह दूँ होठों में कोई बात दबी हैं। मिन्नतें तमाम अज़ीज़ों की मेरे संग काफ़िर गुजरी हैं,…
कमाल है - नज़्म - अंकित राज
इत्तेफ़ाक से हमारा मिल जाना.. कमाल है यूँ मेरी ज़िंदगी में तुम्हारा आना.. कमाल है दीदार की बड़ी हसरत है लेकिन बातों से दिल चुराना.. कमाल …