संदेश
शिवार्पण: सावन की प्रेमगाथा - कविता - आलोक कौशिक
बरखा की रुनझुन में जलते हैं दीप शिवोभाव के मन के अंतरतम तल में कुछ स्वर गूँजे सुभाव के नीलाकाश लहराता बन जटा-जूट की धारा पावन सावन उतर…
स्मृति के झूंडों में - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
किसी ठिकाने का नहीं, बरबस आँखें छलक पड़ी। बादल घने थे हृदय पर, बूँदे पलकों से ढलक पड़ी। होश में कब था, और न होने की आशा, बूँदों में अन…
जंगल के पेड़ - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
जंगल में लगे हुए हरे-भरे, समृद्ध पेड़ों को काटने के लिए आया लकड़हारा, लेकिन हुआ यूँ कि— पेड़ों ने दिखाई एकता और उस लकड़हारे के विरुद्घ…
शब्द - कविता - संजय राजभर 'समित'
मैं शब्द हूँ दर्शन, ज्ञान, विज्ञान, योग का संचयन और व्यक्त करने का माध्यम हूँ। जहाँ-जहाँ जिस समूह ने जिस-जिस रूप में रेखांकित किया वहा…
तीज - कविता - अभी झुंझुनूं
हरी चूड़ियों की खनक में, सौगंध है सावन की, मेहँदी रचे हाथों में, तस्वीर है सावन की। पिया मिलन की आस लिए, नयन सजाए नारी है, हरियाली तीज…
जीवन एक पुस्तक - कविता - अजय कुमार 'अजेय'
जीवन अनुभव की किताब जिसमें कुछ रचनाऍं। सुख दुःख की रची इबारत शीर्षक विरत कथाऍं। जीवन में शीतलता लाती भोर हवा रवानी, पूर्वी विछोभ से उठ…
तू मेरी अन्तर्नाद बनी - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
तू सुरभित पुष्पों-सी कोमल, मैं तेरा मधुमास बना। तू जलती दीपक की लौ-सी, मैं उसका विश्वास बना। तू सागर की शांत लहर-सी, मैं उसका उल्लास ब…
रात: भावनाओं का विराट ग्रंथ - कविता - प्रेम चेतना
यह रात भी कितनी रहस्यमयी है... ना जाने कितने अनकहे जज़्बात, कितनी बेनाम कसकें धीरे-धीरे उतरने लगती हैं इस निशाचर नीरवता की गोद में। जब…
सावन की सरगम - कविता - अभी झुंझुनूं
धरती ओढ़े पात गगरी, बदरा करे सिंगार, सावन आई घटा घिरी, बजी मल्हार-पुकार। हर डाली बोले पपीहा, "पिया मिलन को आओ", मनवा डोले जै…
शाश्वत-संबंध - कविता - प्रवीन 'पथिक'
कितने अरसे बीत गए! लड़ते-झगड़ते रूठते और मनाते हुए, ना तुम बदली! ना मैं ही बदला। वो संयोग पक्ष के लम्हें, आज भी यथावत् हैं। ना तुम मिल…
मेरा गाँव - कविता - दिलीप कुमार चौहान 'बाग़ी'
गीत पिक के, काक के काँव-काँव बट वृक्ष के छाँव, सरसों के पीत पुलकित पुष्प सरिता में विहसित नाव। खेतों में बैलों की जोड़ी मुस्काते खेत-ख…
तुम चाँद की बातें करते हो - कविता - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
तुम चाँद की बातें करते हो, शहरों की सड़के ठीक नहीं, झरने पहाड़ जीव ये जंगल, क्या जीवन का प्रतीक नहीं। काट रहे हो जंगलों को, परिंदे अब …
भगवान बुद्ध - कविता - संजय राजभर 'समित'
मैं टूटा हुआ हूॅं मानवता के तमाम टुकड़े हैं एक टुकड़ा तू भी उठा ले हर टुकड़ा! कुछ न कुछ कहता है आइना दिखाता है, मैं पारस नहीं हूॅं पर …
मौन का भी अर्थ है - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'
मौन का भी अर्थ है। ग़र समझ तुम जाओगे। शब्द से मौन का, निहितार्थ अधिक पाओगे। बात करती है नज़र भी, इनसे भी संवाद हो। चाहते नहीं अधर अब हम…
आया है सावन - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
बादल उड़ते हैं जल लेकर, दो-एक? ना, पूरा दल लेकर। ज्यों पड़ी तप्त भू पर दृष्टि, करते शीतल, करके वृष्टि। लगता है आया पृथ्वी पर— जल, गंगा…
आत्मा से कटे वाई-फ़ाई से जुड़े - कविता - सुशील शर्मा
हम अब एक-दूसरे के पास नहीं रहे, हाथ से हाथ छूटे नहीं, पर छूने की इच्छा मर चुकी है। बगल में बैठा इंसान अब बस एक स्थिति है न ज़िंदा, न म…
तलाश - कविता - प्रेम चेतना
हर जीवन की मौन कथा – तलाश। अशांति की गर्जना में शांति की प्यास, अकेलेपन के वीराने में प्रेम के आस। वेदना की राख में ईश्वर की झलक, और म…
हामर छोटा नागपुर - खोरठा गीत - विनय तिवारी
हामर छोटा नागपुर हामर हीरानागपुर। हीरा मोती सेंताइल यहाँ माटीक तरें भरपूर माटिक तरें भरपूर। हामर छोटा नागपुर हामर हिरानागपुर हामर सोना…
मैं पीले साँप की जात में शामिल हो गया हूँ - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
रात को सोया तो लगा जैसे बिस्तर कोई पुराना जंगल हो उसमें रेंगते हैं मेरे अपने पाप, मेरे ही पसीने से नम हुई घास, और एक पीला साँप — ठीक म…
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