संदेश
जंगली मन - कविता - सुनीता प्रशांत
इन हरे भरे जंगली पेड़ों जैसे मैं भी हरी भरी हो जाऊँ मनचाहा आकार ले लूँ कितनी भी बढ़ जाऊँ फैल जाऊँ दूर-दूर तक या आकाश को छू जाऊँ रोकना…
फिर भी मुस्कुरा दिया - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
ग़म थे ज़माने भर के, फिर भी मुस्कुरा दिया। फूल होने का, फ़र्ज़ अदा किया। काग़ज़ और पैन का, समझोता टूटा। लिखता वो, काग़ज़ की नापसन्दगी का। चलती…
ख़ास - कविता - विनय विश्वा
मनुष्य गुणों से ही तो ख़ास होता है इसीलिए तो वह दिल के पास होता है। ईश्वर के अवतारी युग– त्रेता हो या द्वापर राम के ख़ास हनुमान कृष्ण के…
प्रेम - कविता - प्रेम ठक्कर
प्रेम नहीं सिमटता व्यक्ति में, सत्य है। प्रेम में विलीन होना निश्चित है, सत्य है। बीते कल की चिंताओं को भूलकर, उस प्रेम के समंदर में ग…
धरती का शृंगार मिटा है - कविता - राघवेंद्र सिंह
धधक उठी है ज्वालित धरती, जल थल अम्बर धधक उठा है। अंगारों की विष बूँदों से, प्रणय काल भी भभक उठा है। सूख गए हैं तृण-तृण सारे, दिग दिगंत…
तुम साथ हो जाना - कविता - मेहा अनमोल दुबे
जब रंग अपनी छटा बिखेरें, तुम साथ हो जाना, जब नील गगन सफ़ेद रंग सजाए, तुम साथ हो जाना, अमलतास जब सफ़ेद पीले गुच्छों को धरती पर बिखेरें, …
बिन तेल की बाती - कविता - मयंक द्विवेदी
देख बिन तेल की बाती को रजनी के अंधेरे भाग रहे देख धधकती ज्वाला में अपने सूत के अंग-अंग को आनंद की इस अनुभूति में प्राणों की थाती देकर…
पंछियों का दर्द - कविता - विपिन उपाध्याय
हम है पंछी हाय रे गर्मी आई रे गर्मी हम है आसमान में उड़ते स्वयं ही अपना दाना चुकते हाय रे गर्मी आई रे गर्मी सर्दी से हमें नही है दिक़्क़…
दुख बदली - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
कभी शाम के सिरहाने खड़े सूरज को देखा है, ढलते माथे पर दुख बदली की रेखा है। स्मरण किया उन व्यर्थ हुए मूल्यों का, नदी के वेग, नदी की श्र…
ख़ामोशियाँ - कविता - आनन्द कुमार 'आनन्दम्'
ख़ामोशियाँ बहुत कुछ कहती हैं धीरे-से, हौले-से, चुपके-से ख़ामोशियाँ बहुत कुछ कहती हैं। मन की बाट जोहती हैं बेसुध-बेजान-बेबसी की साए में…
अभिशप्त इच्छाएँ - कविता - प्रवीन 'पथिक'
सब कुछ बिखर जाने के बाद; पथ-परिवर्तन के बाद; और स्मृतियों का गला घोंटने के बाद भी लगता है, कोई ऐसी बिंदु, कोई अवशेष, कोई रिक्तता छूट र…
स्वयं जलो - कविता - संजय राजभर 'समित'
जलो मत न जलाओ किसी को यदि जलाना है तो अंदर के विकारों को जलाओ अप्प दीपो भव: बनो कुंदन बनोगे आत्म चेतना जिस दिन जल गई फिर क्या जलना क्य…
होली - कविता - गणेश भारद्वाज
सद्भावों की माला होली, ख़ुशियों की है खाला होली। रंग बसे हैं रग-रग इसकी, रंगों की है बाला होली॥ मन के शिकवे दूर करे यह, मस्ती में फिर च…
अनुसरण कृष्ण का - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
शिथिल पाँव भोग के, विस्मरण भाव शोक के। कर्म से गति का अवसर, सम्यक ध्यान अहरहर। अनुसरण कृष्ण का। होली, अग्नि दहन ईर्ष्या का, उचित प्रयो…
सुरक्षित होली प्रदूषणमुक्त होली - कविता - डॉ॰ विजय पण्डित
आओ सब मिल हँसी ख़ुशी सुरक्षित होली मनाएँ पर ध्यान रहे हरा पेड़ होलिका की भेंट चढ़ने ना पाएँ, होलिका दहन की अग्नि से दूर हो सब संताप नफरत…
उड़ गई गौरैया - कविता - सुशील शर्मा
आज गौरैया दिवस पर मैंने फिर से दी गौरैया को आवाज़ नहीं बोली घर के आँगन मुंडेरों पर चुपके से फुदक कर निकल गई पंख फुलाए जैसे ग़ुस्स…
बचपन - कविता - प्रवीन 'पथिक'
है याद आती, वह बातें पुरानी, वही प्यारा क़िस्सा, वह बीती कहानी। याद आता वह तेरा मुस्काता चेहरा, थी होती लड़ाई, पर था प्रेम गहरा। जब भी …
नहीं चाहता आसाँ हो जीवन - कविता - मयंक द्विवेदी
चाहे सौभाग्य स्वयं हो द्वार खडे, चाहे कर्ता भी हो भूल पड़े, नहीं चाहता आसाँ हो जीवन, चाहे मग में हो शूल गढ़े। जो पत्थर होऊँ तो नींव मिल…
बाँध ना पाया - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
व्यर्थ हुए सावन ने कहा― क्या कोई सम्भाल ना पाया, बहते-बहते पानी को, मुट्ठी में पकड़ ना पाया। यहाँ पुल तिनके से टूट गए, बाँध भी नदी, बा…
ख़ुद की तलाश - कविता - सतीश पंत
मेरे कमरे की खिड़की से आती रोशनी की किरण प्रायः पूछती है मुझसे कि क्या कर रहा हूँ मैं पहरों बैठकर चुपचाप एकांत में कभी निहारते घर की छ…