संदेश
लिखना - कविता - पंडित विनय कुमार
बार-बार कुछ लिखने के बाद बदल जाता है मन का भाव जिसमें होते हैं विचार जिसमें होती हैं सोची गई कल्पनाएँ हर एक कल्पना में होता है सृजन का…
तुम्हीं तो हो - कविता - प्रवीन 'पथिक'
हर सुबह मेरे ख़्वाबों में आकर मुझे अपनी सुगंधों से भर देने वाली तुम ही तो हो। तुम्हारा आहट पाकर ही तो, पंछी बोलते हैं, फूल खिलते हैं, भ…
धर्मयुद्ध - कविता - विभान्शु राय
जब कुरुक्षेत्र की रणभूमि में, लड़ने को सब तैयार हुए, अस्त्र-शस्त्र से सज्जित होकर, योद्धा रथ पर सवार हुए॥ एक तरफ़ थी कौरव सेना, और कई श…
हिम्मत - कविता - अवनीश चंद्र झा
आ ज़रा, पास तो आ मेरे गले लगा मुझे, मुस्कुरा तो सही अपना हाथ, मेरे हाथ में रख एक बार नज़र मिला तो सही ये युद्ध का मैदान है पगले एक बार …
प्रेम रहा भरपूर - कविता - द्रौपदी साहू
आँधी आई चला गया वो, छोड़ प्रिये को दूर। इक था राजा इक थी रानी, प्रेम रहा भरपूर॥ कैसे ढूँढे़? किससे पूछे? पता बताए कौन? रुकती ना आँसू आ…
यही पल तुम्हारा है - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
यही पल तुम्हारा है जो पल जी रहे हो, यही पल तुम्हारा है। कल का किसको पता! व्यर्थ इसकी चिंता कर, ज़िन्दगी गॅंवा रहे हो। ख़्वाहिशें बहुत …
दिशाहीन पथिक - कविता - प्रवीन 'पथिक'
कुछ विचित्र-सा हो गया हूॅं मैं! कुछ चकित, द्रवित, अन्यमनस्क-सा। स्मृतियाॅं पीछा नहीं छोड़ रही मेरा प्रश्न कभी उलझ के रह गए थे। भावनाओं…
दीपक एक आज जलाएँ ऐसा - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना'
दीपक जल-जल कह रहा प्रियतम, सदा रहे जग उजास। रहे दूर तिमिर सदैव ही नव ऊर्जा का फैले नित्य प्रकाश॥ हर घर-आँगन में दीप जले सुंदर हो जन-जन…
मुबारक हो दीपों का त्यौहार - कविता - राम प्रसाद आर्य 'रमेश'
नमस्कार, नमस्कार, नमस्कार, मुबारक हो दीपों का त्यौहार। माँता लक्ष्मी की पूजा सफल हो, घर में धन की हो वर्षा अपार। दीप घर-घर जले हों हज़ा…
बंद दरवाज़ें - कविता - निखिल पाण्डेय श्रावण्य
बंद दरवाज़ें सूने आँगन, झाँझर बोले टपकें बूँदन। छत की सीली साँसें गुनतीं, बीते क्षण की मौन धुनन॥ दीवारों पर रंग उतरता, बीते त्योहारों …
अक्टूबर की सुबह - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
आज मैं उसे नहीं जगाऊँगी। रात को देखा था— वह जागता रहा देर तक, जैसे कोई शब्द तलाश रहा हो जो शब्दकोश में नहीं है। खिड़की खुली है, पेड़ स…
मैं कौन हूँ? - कविता - विजय शर्मा एरी
मैं कौन हूँ, ये रहस्य अनंत, ना जिसका आरंभ, ना जिसका अंत। ना जन्म मुझे, ना मरण का भय, मैं अजर-अमर, मैं शाश्वत स्वयं। बम, मिसाइल, तोपें …
कृष्ण तुम पर क्या लिखूँ - कविता - सुशील शर्मा
कृष्ण, तुम्हें शब्दों में बाँधना वैसा ही है जैसे आकाश को हथेली में भरने की कोशिश, जैसे सागर को प्यास की परिभाषा में समेटना, जैसे प्रका…
मैं भारत हूँ - कविता - संतोष कुमार
मैं बस एक राष्ट्र नहीं एक संकल्प हूँ प्रयास हूँ आज़ादी का एहसास हूँ कर्तव्यों का ताला भी हूँ अधिकारों की चाभी भी कुछ पुराने ज्ञान सरीखा…
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