देवो के देव महादेव - कविता - उमाशंकर मिश्र

गले मे सांप जिसके
मस्तक पर चाँद जिसके
सुंदर जटाओ मे गंगा जिसकी
जिसके बाजू पर डमरु लटके है
वही प्यारे शंकर
हमारे दिल मे बैठे है।

किसी को नही काटते साँप
किसी को नही डुबाती गंगा
किसी को नही करतै परेशान
किसी को नंदी भी करता नही परेशां
वही महादेव मेरे दिल के अंदर बैठै है।

जब अराजकता चरम पर जाती है।
उद्दंडता शासन करती है।
अनपेक्षिता मस्तक झुकाती है
जब आसुरी शक्तियां पूरण रूपेण जम जाती है।
तब शंकर के त्रिनेत्र खुल जाते हैं।
प्रलय भुकंप तब जमकर आते हैं।
समय के अनुसार रहो।
सुसंस्कृत बनकर रहो।
परोपकार करो और जल का दुरुपयोग ना करो
इतना देखकर शंकर भी नृत्य करते हैं।
वही शंकर हमारे दिल मे वास करते हैं।
वही शंकर हमे तन्हाइयों से बाहर लाते हैं।
खुशी का पैगाम देते है
और प्रसन्नता झोली मे डाल देते है।
वही शंकर डमरु की आवाज मे तांडव करते है।
और यही शंकर सत्यम शिवम सुंदरम 
हिंदी हिदू हिंदुस्तान की लाज रखते हैं।

उमाशंकर मिश्र - मऊ (उत्तर प्रदेश)

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