आहिस्ता आहिस्ता जिंदगी निखर गई,
जुस्तजू मैं तेरी मैं बस खो गई।
दिल की राहों में जो दी तूने दस्तक,
मन मयूर नाच उठा हो मद मस्त।
चाँदनी रात की तन्हाई भी मेरी,
ऐसे महकी की कमल दल हो गई।
जिंदगी तो बस, अब बन गयी गुलाब,
पा लिया तुझे अब नही कोई ख्याब।
महफ़िल में सदा तुझे देखती हूँ,
नसीब है तेरा मैं तुझे सहजती हूँ।
चाँद की चाँदनी में दिखा ऐसा नूर,
पा लिया हो जैसे महबूबा ने महबूब।
जिन्दगी बन गई, ऐसी जुस्तजू,
पाकर तुझे, लगता है, हो गयी मगरूर।
कारवाँ मोहब्बत का यूँ ही चलता रहे,
दिल की गहराइयों में मेरी तू टहलता रहे।
अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी" - कानपुर नगर (उत्तरप्रदेश)