अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ

अटल बिहारी वाजपेयी की कविताएँ  Atal Bihari Vajpayee Kavitayen. Hindi Poetry Of Atal Bihari Vajpayee
अटल बिहारी वाजपेयी (25 दिसम्बर 1924 - 16 अगस्त 2018) भारतीय राजनीतिक नेता और भारतीय जनता पार्टी (भा॰ज॰पा॰) के सदस्य थे। उन्होंने भारतीय राजनीति में लगभग 6 दशकों तक सक्रिय भूमिका निभाई और 3 बार प्रधानमंत्री के रूप में भी कार्यरत रहे। वे भारतीय जनता पार्टी के सुसंगठन प्रमुख भी रहे और भारतीय राजनीति में उनकी महत्वपूर्ण योगदान हैं।
राजनीति के क्षेत्र में उनकी महानता के साथ-साथ साहित्य की दुनिया में भी वें महत्वपूर्ण योगदान दिए। उनके कविताओं में देशभक्ति, साहित्यिक दृष्टिकोण और समाज के मुद्दे एक साथ आते थे। वे भाषा के माध्यम से अपने विचारों को व्यक्त करने में माहिर थे और उनकी कविताओं में गंभीरता और उत्कृष्टता का संगम था। उनकी कविताओं में भारतीय संस्कृति, इतिहास, और राष्ट्रीय भावनाएँ महत्वपूर्ण थीं। उन्होंने कविताओं के माध्यम से एक नेता की दृष्टि से समाज में परिवर्तन और सुधार के लिए प्रेरणा दी।

पढ़िएँ अटल बिहारी वाजपेयी जी की कुछ देशभक्ति कविताएँ जो उनकी गहरी राष्ट्रीय भावनाओं को प्रकट करती थीं। 

१. भारत ज़मीन का टुकड़ा नहीं


भारत ज़मीन का टुकड़ा नहीं,
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघाएँ हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है,
इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जिएँगे तो इसके लिए
मरेंगे तो इसके लिए।

२. दुनिया का इतिहास पूछता


दुनिया का इतिहास पूछता,
रोम कहाँ, यूनान कहाँ?
घर-घर में शुभ अग्नि जलाता।
वह उन्नत ईरान कहाँ है?
दीप बुझे पश्चिमी गगन के,
व्याप्त हुआ बर्बर अँधियारा,
किन्तु चीर कर तम की छाती,
चमका हिन्दुस्तान हमारा।
शत-शत आघातों को सहकर,
जीवित हिन्दुस्तान हमारा।
जग के मस्तक पर रोली सा,
शोभित हिन्दुस्तान हमारा।

३. मैं अखिल विश्व का गुरू महान


मैं अखिल विश्व का गुरू महान,
देता विद्या का अमर दान,
मैंने दिखलाया मुक्ति मार्ग
मैंने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान।
मेरे वेदों का ज्ञान अमर,
मेरे वेदों की ज्योति प्रखर
मानव के मन का अंधकार
क्या कभी सामने सका ठहर?
मेरा स्वर नभ में घहर-घहर,
सागर के जल में छहर-छहर
इस कोने से उस कोने तक
कर सकता जगती सौरभ भय।


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos