कर्मगति - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

राजा हो रंक
कर्म गति से सबको ही 
दो चार होना पड़ता है।
कर्मों के हिसाब से फल
भोगना ही पड़़ता है,
कौन बच सका है
कर्मगति के प्रभाव से,
जिसने जो बोया
वही काटना पड़ता है।
इसमें न कोई भेद है
न ही कोई दुविधा,
जैसी करनी वैसी भरनी
सबके लिए ही है
कर्मों की सुविधा।
रोने  गाने नहीं फर्क पड़ता
राजा हो या रंक
सबको भोगना ही पड़ता।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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