नशा मुक्ति - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता'

ख़ुद भी जागें औरों को जगाएँ,
नशामुक्ति अभियान चलाएँ।

भूलवश करें न ऐसी करतूत,
रहे ना जिससे सेहत मज़बूत।
अपनी भूलों को कर क़बूल,
अपनाएँ जीवन में उत्तम उसूल।
मिलकर हम माने और मनाएँ,
ख़ुद भी जागें औरों को...।

नशे की लत होती जग में बड़ी ख़राब,
गाँजा भाँग अफ़ीम या फिर हो शराब।
गुटका तंबाकू है बर्बादी का कारण,
समय रहते ही संभलना है निवारण।
आओं मिलकर कदम बढ़ाएँ
ख़ुद भी जागें औरों को...।

जानलेवा है नशे की मार,
बात पते की कर लो स्वीकार।
घर-परिवार जिससे होता बरबाद,
चेतनमय जीवन में आता अवसाद।
कर त्याग श्रेष्ठ नियम अपनाएँ,
ख़ुद भी जागें औरों को...।

दृढसंकल्पित हो मिल सब आज,
करें नशामुक्त भारत का आग़ाज़।
राष्ट्रोत्थान में हो एक नूतन उपकार,
दरिद्र जीवन जीने को हो न लाचार।
व्यर्थ बैठकर अब समय न गवाएँ,
ख़ुद भी जागें औरों को...।

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' - गुहाला, सीकर (राजस्थान)

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