प्रेम हृदय से - कविता - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

प्रेम ह्रदय है अविरल धार
जब-जब मिलत मन का उद्धार,
नहीं कोई है तन के पास 
एक आहट है बस चुपचाप।

धीरे-धीरे चुपके-चुपके 
रात रंजनी आई पास, 
लहर उठी हृदय में अपार 
महक उठा तन का उद्गार।

प्रेम हृदय प्रेम की आस
एक भाव मन का विश्वास,
सब कुछ देह त्याग मन काम
डूब समुंदर तैरकर पार।

मुक्त हुआ मन का उद्गार 
हे चिराग मन कर उद्धार,
प्रेम ह्रदय प्रेमी के पास 
कर मानव मानव उद्धार।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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