संदेश
सिद्धू-कान्हू: संथालों का संग्राम - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'
जब अन्याय की आँधी आई, वनवासी जब रोते थे, शोषण की ज्वाला में जलकर, सपने उनके खोते थे। साहूकारों के बन्धन में जब, जीवन कुम्हलाने लगा, ज़म…
झारखंड राइज भइया देसेक हामर सान - खोरठा गीत - विनय तिवारी
झारखंड राइज भइया देसेक हामर सान देसेक हामर सान हो, देसेक हामर सान सोना चांदी लौहा मिलय 2 आरो कोयलाक खान हो आरो कोयलाक खान झारखंड राइज …
ग़रीबी - कविता - रवि कुमार
क्या गुज़रती होगी उनपर जिनके भूखे पेट है लाल कई आश लगाए, सड़क किनारे तनपे है कपड़े फटे, पुराने थामे कटोरा हाथ में है नहीं कुछ खाने को। …
पुण्य - कविता - मदन लाल राज
भरी दोपहरी में एक सज्जन ने– घर के आँगन में पक्षियों के लिए, सकोरे में पानी भरा। तभी दरवाज़े पर एक शुष्क आवाज़ आई। किसी ने प्यासा होने की…
प्रिया के लिए - कविता - पवन कुमार मीना 'मारुत'
प्रिय पत्नी पवित्र प्रेम पारावार पाकर, जीवन पहेली प्रियतम पार किया है। परिवार पालन पोषण प्रेरणा पति की, सुख संग जीवनसाथी जीवन जिया है॥…
बचपन की यादें - कविता - चौधरी बिलाल
धीरे-धीरे समय बढ़ता गया यारों का मजमा घटता गया कामों में हो गए सब बिजी तक़दीर ने ऐसी माया खींची बचपन था यारों बड़ा प्यारा उम्र ने किया …
बात मन की कभी तो बताया करो - ग़ज़ल - डॉ॰ आदेश कुमार पंकज
बात मन की कभी तो बताया करो दर्द दिल में छिपा मत सताया करो हो अकेले कभी मम ज़रूरत पड़े पास अपने हमें तुम बुलाया करो बाग़-बगिया दिशाएँ मनोर…
नया सवेरा - कविता - मयंक द्विवेदी
प्रत्यूषा के आँगन में निकला नया सवेरा है संघर्षों के मैदानों में क्या जीना क्या मरना है साहिल से क्या यारी अपनी जब मझधारों में पलना ह…
कहीं पे चंदर उदास बैठा - ग़ज़ल - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव 'जानिब'
अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन तक़ती: 1222 1222 1222 1222 कहीं पे चंदर उदास बैठा, कहीं सुधा भी बुझी पड़ी है मगर ये क़…
बहुत दूर तक - कविता - प्रवीन 'पथिक'
बहुत दूर तक, देखता हूॅं उस मानव को। जो बुन रहा अपनी मायाजाल। उसमें फँसना नहीं चाहता, फाँसना चाहता है। अपने पास रहने वाले लोगों को। कोई…
रंगवाले तू रंग से भर दे - गीत - उमेश यादव
प्यार भरी रंग की पिचकारी, छुपा रखा है क्यों अंतस में। बरसाओ सतरंगी सबपर, अंग अंग तू रंगमय कर दे। रंगवाले तू रंग से भर दे॥ शुष्क हो रहे…
रंगदार होली - कविता - प्रमोद कुमार
देखो आम बौराए, चना-मटर गदराए, गेहूँ-अरहर झूम-झूम, धरती से प्यार जताएँ। नाचे सरसों पीला, तीसी बड़ा रंगीला, योगी वेश में शोभ रहा है, ढाक…
होली - कविता - आलोक कौशिक
प्रेम की पिचकारी लाना घोलना सौहार्द के सारे रंग वृंदावन के फाग गाना ऐसे होली मनाना मेरे संग होलिका संग हो ईर्ष्या दहन तब लगाना मुझको ग…
होली - कुण्डलिया छंद - सुशील शर्मा
1 फागुन लिखे कपोल पर, प्रेम फगुनिया गीत। दहके फूल पलाश के ,कहाँ गए मन मीत॥ कहाँ गए मन मीत, फगुनिया हवा सुरीली। भौरों की गुंजार, हँसे म…
गुल ऐसे मोहब्बत के खिले होली में - रुबाई - सैय्यद शारिक़ 'अक्स'
गुल ऐसे मोहब्बत के खिले होली में सब प्यार के रंगों में ढले होली में आपस के सभी शिकवे भुलाके ऐ 'अक्स' मिल जाते हैं दुश्मन भी गल…
दिखावटी होली - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
है दिखावटी रंगों का जलसा होली पर, असली रंगों को होली अब मोहताज हुई। सद्भाव, प्रेम की होली होती नहीं कहीं, हाँ, कृत्रिम रंगों की तो होल…
होली आई ख़ुशियाँ लाई - कविता - गणपत लाल उदय
ख़ुशियों की सौग़ातें लाया फिर होली-त्योहार, रंग लगाओ प्रेम-प्यार से करो गुलाल बौछार। करो गुलाल बौछार जिसका था हमें इन्तज़ार, दूर करो गिल…
होली का त्यौहार - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
धर्म सनातन पर्व शुभ, होली का त्यौहार। धवल रक्त पीला हरित, फागुन रंग बयार॥ भारत जन उल्लास मन, फागुन होली रंग। भींगे रंगों से वदन, गुलशन…
होली - कविता - रमेश चन्द्र यादव
हर बुराई का करो दहन, और अच्छाई को गले लगाओ। यही महात्म्य है होली का। ख़ुद समझो औरों को बताओ। सदियों पहले एक बुराई ने, था रिश्तों को बदन…
रंगोत्सव - कविता - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'
रंगों का है उत्सव आया, नव ऋतु ले रही भोर पतझड़ भी है गुज़र गया, धरा हुई आत्मविभोर दिल में है प्रेम उमंग, छाया ढोल मृदंग का शोर मुस्कान…
संध्यावंदन - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
"बहुत ही बकवास! दिमाग़ से पैदल है क्या एंकर, एक ही बात को बार बार दोहराता है। मुझे एच॰ओ॰डी॰ का फ़ोन नहीं आता तो यहाँ महत्वपूर्ण यज्…
नदी की धारा - कविता - राजेश राजभर
जल ही जल निर्मल पावन अखण्ड अलौकिक मन भावन हे सरिता, तटिनी, तरंगिणी, जीवनदायिनी निर्झरिणी। उदगम अनन्त अद्भुत संकरी बिखरी धाराएँ, सम्मिल…
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
वह संघर्ष से सफलता तक, अद्भुत विधान दर्शाती है। नारी का सम्मान ही जीवन, पौरुषता पथ ले जाती है। सोपानों को चढ़ती नारी, कीर्ति पताका लहर…
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