संदेश
प्रेम की भाषा - गीत - महेश कुमार हरियाणवी
प्रेम की भाषा बोल रही। 2 नज़रों ने नज़रों में देखा लहरों पे लहरें डोल रही। प्रेम की भाषा बोल रही। 2 ना जाने हम उसका नाम ना जाने घर, ठौर,…
जीवन के गीत - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
1 एक उम्मीद है आशा है क्या चाह हृदय में पलता है पल्लवित होते छिपे भावों में कौन खाधोत सा जलता है एक विश्राम तक जाते-जाते भूल जाता हूँ …
नशा मुक्त भारत - गीत - उमेश यादव
नशे के विरुद्ध अब, समर सज चुका है, नशा मुक्त भारत हो, शंख बज चुका है। समर सज चुका है, शंख बज चुका है॥ जवानी नहीं अब, नशे मे डुबेगी,…
याद तुम्हारी मैं बन पाता - गीत - रमाकान्त चौधरी
याद तुम्हारी मैं बन पाता तो जीवन जीवन होता। मुझे बुलाती ख़्वाबों में तुम अपना मधुर मिलन होता। रोज़ मुझे तुम लिखती पाती, उसमें सब सपने ल…
गाँव की छाँव - कविता - राजेश राजभर
अब नहीं रहना चाहता, कोई गाँव में, आम, नीम, पीपल, महुआ की छाँव में। क्या यही यथार्थ है! हमारे गाँव का! शहर जा रहा, हर आदमी तनाव में। अब…
चोकर की लिट्टी - कविता - गोलेन्द्र पटेल
मेरे पुरखे जानवर के चाम छिलते थे मगर, मैं घास छिलता हूँ मैं दक्खिन टोले का आदमी हूँ मेरे सिर पर चूल्हे की जलती हुई कंडी फेंकी गई …
एक पल - कविता - सुशील शर्मा
टूट गया छूट गया स्वप्न एक रूठ गया। एक पल था रुका नहीं एक आँसू लुढ़क पड़ा। लगा कि वो अब मिला फिर कहीं छिटक गया खिसक गया सरक गया। फिर मिले…
हे मानव - कविता - सचिन कुमार सिंह
हाड़ माँस के इस झोली पर, हे मानव! हो क्यों इतराते? रक्त धरा की वैतरणी में, जीवन रूपी नाव चलाते। झोली एक दिन फट जाएगी, नौका वैतरणी तट प…
कोरस में गातीं - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
बहुत दिनों से नहीं आ रही पुरवा की पाती। धूप-दरीचे हिले-मिले हैं। मिटते शिकवे और गिले हैं॥ मन मेरा बंगाली है तो तन है गुजराती। छानी में…
स्वामीये शरणम् अय्यप्पा - कविता - गणपत लाल उदय
विश्व के प्रसिद्ध मंदिरों में यह मन्दिर भी है ख़ास, जहाॅं विराजे अयप्पा स्वामी यही उनका निवास। विकास के देवता माने जाते यह कहता इतिहास…
मानवीय प्रदूषण - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा
आँखों को वह अब नोच रहा, मानव! अब भी क्या सोच रहा? तेरे ही हठ का कारण यह, है ख़तरनाक उच्चारण यह। वह कलयुग का खर दूषण है, मानव! वह '…
बुद्ध - कविता - संजय राजभर 'समित'
एकाग्र चित्त होकर जो अन्तर्मुखी है उदार होकर गहन सोच में सारे मनोवृत्तियों को समेटे आत्म अवलोकन के लिए प्रकृति के स्वरूप में लीन है गह…
असफलता से सीखें - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सदा पराजय आलसी, व्यसन कलह संलग्न। मुफ़्तखोर निन्दक मनुज, दंगा हिंसा मग्न॥ अहंकार पद पा मुदित, मदमाता इन्सान। पराजय विचलितमना, खो विव…
तेल की कमी में बाती - कविता - रोहित सैनी
जैसे मौत आती है; और... "है" का "था" हो जाता है! दीप आँधियों में एकदम से बुझ जाते हैं! तेल की कमी में बाती... टिमटि…
इक छोटा सा पत्थर हूँ - कविता - मोहम्मद रब्बानी
मैं विडंबनाओं की गली से निकला, इक छोटा सा पत्थर हूँ। मैं धोखों में धोखा खाया, इक पथ के कंकड़ सा हूँ। मैं दोस्तों से बिछड़ा हुआ, इक अक…
गोवर्धन पूजा - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
गौ माता ममता हृदय तुल्य, अपर मातु सन्तान समझ लो। धवल स्वच्छ निर्मल मधुर सरस, गाय दूध वरदान समझ लो। गौ धन सर्वोत्तम जगत पूज्य, पोषक क…
दीप - कविता - इन्द्र प्रसाद
दीप से दीप तुम भी जलाते रहो, दीप से दीप हम भी जलाते रहें। मन में अँधेरे जो ढेर सारा भरा, तुम भगाते रहो हम भगाते रहें॥ है तमस का असर, छ…
दीप जलें - गीत - सुशील शर्मा
दीप जलें उनके मन में, जो व्यथित व्यतीत बेचारे हैं। दीप जलें उनके मन में, जहाँ लाचारी में जीते हैं। दीप जलें उनके मन में, जहाँ होंठों क…
लौट आओ माँ - कविता - राजेश 'राज'
शून्य में टिक गईं सजल उदास आँखें, दिल में उठी एक वेदनापूर्ण टीस, घर जाने की उत्सुकता भी थक सी गई है, क्योंकि– जिन्हें था हर पल बेटे का…
कुछ तो हमारा भी हक़ है कन्हैया पे - गीत - श्याम सुन्दर अग्रवाल
कुछ तो हमारा भी हक़ है कन्हैया पे, फिर तू काहे मन ही मन जले राधा। चाहे तू कान्हा की बने पटरानी, हम भी तो दासी बन सकतीं हैं राधा। याद कर…
हिंदी भाषा के समक्ष चुनौतियाँ - आलेख - डॉ॰ ममता मेहता
हिंदी भारत की राष्ट्र भाषा होने के साथ जनभाषा भी है। यही वह भाषा है जिसने कश्मीर से कन्याकुमारी तक संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बाँध र…
देश की माटी है चंदन - कविता - इन्द्र प्रसाद
देश की माटी है चंदन। करें हम बार बार वंदन॥ १ प्रकृति की अनुपम सुषमा यहाँ, और षड् ऋतुएँ मिलती कहाँ। यहीं हिमधारे पर्वतराज, तपस्वी …