संदेश
कहाँ हो तुम अनुपस्थित? - कविता - राजेश 'राज'
फूलों में जो मृदु सुवास है विमल इन्दु में जो उजास है मलय पवन जो लिए गीत है तटिनी का जो प्रिय संगीत है सबमें तुम हो पुलकित कहाँ हो तुम…
गाँव - कविता - संजय राजभर 'समित'
शहर में रहते हुए बीत गए पंद्रह साल हर वक़्त तनाव लेनदारी में देनदारी में पर सुकून कहाँ? दोनों बाँह फैलाए आया था शहर पूरी आत्मविश्व…
बुनकर - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
यह कविता पसमांदा मुसलमानों को आधार बनाकर लिखी गई है। हमारे देश में पसमांदा मुसलमानों की संख्या लगभग 85 प्रतिशत से अधिक है और यह समाज आ…
सुख की पूरकता - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
इंदिरा और आनन्द का एकलौता बच्चा पढ़ लिखकर अप्राप्त नश्वर भविष्य को सुनहरा बनाने निकल गया। माता-पिता के पास दर्जनों भृत्य रख-रखाव देखभा…
यादों के अवशेष - कविता - नीतू कोटनाला
सभ्यताओं का चेहरा तुम्हारे जैसा होता है जिसमें होते हैं मेहनत के अवशेष होती है वो गूढ़ भाषा जिसे समझा जाना मुश्किल है होते हैं वो दुख…
एक लज्जा भरी सुनहरी साँझ - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
शीतल सहज सुखद अस्ताचल रक्तिम, एक लज्जा भरी सुहानी शाम रे। श्रान्त क्लान्त दिनभर उद्यम अधिरथ, स्वागत प्राणी जग रत अविराम रे। अनुराग आश…
जवाँ मदहोश आँखों में - गीत - सुधीरा
जवाँ मदहोश आँखों में, छुपी है नीर की बदली, छुपी है नीर की बदली। ये अंदर से भरी हुई, ये दिखती है जो इक पगली, ये दिखती है जो इक पगली। जव…
लड़के - कविता - अमित श्रीवास्तव
बेटे के जन्म पर जश्न मनाया जाता है, कुल का दीपक है हर ओर जताया जाता है। दीपक सी रोशनी देते हैं, तो जलन क्या वे सहते नहीं? बस... वे लड़…
द्वंद - कविता - पालिभा 'पालि'
कुछ घटनाएँ अक्सर छोड़ देती है, मन में कुछेक सवाल, ये सवाल ही छेड़ देती है मन में अक्सर द्वंद, ये द्वंद उथल-पुथल मचा देती है पैदा करके …
नए-नए ये कॉलेज के दिन - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
नए-नए ये कॉलेज के दिन, कट न पाएँ यारो के बिन। नए-नए सब दोस्त मिले हैं, लगते मगर पुराने हैं। अपने-अपने से लगते हैं कोई नही बेगाने हैं।…
चाहत - कविता - गणेश दत्त जोशी
तेरी ख़ुशबू से पल-पल महकता रहा है मेरा, भला और क्या मैं चाहूँ? हर क्षण हर पल बस तेरा ही साथ माँगूँ। तू ही तो बसा है मेरे रोम-रोम में, …
साहित्य - कविता - ज्योति
साहित्य का स्वर अनंत गहराई से निकलता है, विचारों का संग्रह, भावों का समाहार है। कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास की उच्चता है, साहित्यिक रच…
छाया बिन काया - कविता - शेखर कुमार रंजन
काया को छाया से प्यार हो गया, आँखों से आँखें, चार हो गया। छाया चली गई छोड़कर एक दिन, तब से ही काया बीमार हो गया। काया, छाया को कभी भुल …
बचके रहिए - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
हादसों का शहर है ये बचके रहिए। कामना है आसमानी हो गई। और फूलों की जवानी हो गई॥ जीवन में है नदी की धार सा बहिए। इंसानियत सूख के काँटा ह…
साला का महत्व - कविता - विजय कुमार सिन्हा
जिस घर में मेरा विवाह तय हुआ उस घर में पहले से था एक जमाई रिश्ते में था वह मेरा भाई। एक दिन मैंने उससे कहा– तुम तो अनुभवी हो ससुराल …
नींद कहाँ आती है - कविता - प्रमोद कुमार
अकेला मन उदास हो, और सपनों का दास हो। नींद कहाँ आती है! ख़ूबसूरत जीवनसाथी हो, पर हरदम जज़्बाती हो। नींद कहाँ आती है! घर में बेटी जवान हो…
भक्त और भगवान् - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
अनुपम मधुरिम अरुणिमा, शुभ प्रभात उत्थान। पूजन वन्दन शुद्ध मन, भक्त और भगवान्॥ खिले कुसुम सरसिज सरसि, कुसुमाकर वरदान। भक्ति भक्त चित…
महावीर सूर्यपुत्र कर्ण - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
उठो पार्थ प्रहार करो, ये सूरज ढलने वाला है, क्षणिक तनिक तुम देर किए, तो रथ निकलने वाला है। यह गांडीव धरा रह जाएगा, जब विजय धनुष टकारा…
मृग मरीचिका - कविता - सुनील शर्मा 'सारथी'
पानी से पानी पर पानी लिख रहा हूँ, बीते ज़माने की कहानी लिख रहा हूँ, बहते हुए वक़्त की रवानी लिख रहा हूँ, जो खो गई है वक़्त की रफ़्तार में…
मुझे ख़बर ही नहीं - कविता - राकेश कुशवाहा राही
ये ज़माना है तुम्हारा हर ख़ुशी है तुम्हारी लोग करते है बातें बहुत सी यहाँ मुझे ख़बर ही नहीं मैं बेख़बर ही सही। बादल भी है बेवफ़ा सा ज़र…
नमक - कहानी - कुमुद शर्मा 'काशवी'
नलिनी एक सुघड़, सुशील घर व बाहर के कामों में पारंगत एक समझदार पढ़ी लिखी संयुक्त परिवार में पली बढ़ी लड़की थी। परिवार भी ऐसा जहाँ सभी स…
फ़र्क़ तो पड़ता है - नज़्म - मनोरंजन भारती
तेरा साथ ना होना तुमसे बात ना होना, बेज़ुबाँ हर रातों में कच्ची नींद में सोना, मन बाबरा किसी भी ओर चल पड़ता है, तेरा संग होना ना होना…
क्या यही था, दोष मेरा? - कविता - सौरभ तिवारी 'सरस्'
निष्कामना की प्रीति हिय में धार कर, और विषमताओं के बंधन पार कर, प्रिय तेरी मुस्कान था परितोष मेरा, क्या यही था, दोष मेरा? इक कहानी जिस…
चलो इक बार फिर से - कविता - ऊर्मि शर्मा
चलो इक बार फिर से अजनबी रास्तों पे चुपचाप चले, अपनी ख़ामोशीयों में गुम ख़ुद को दोहरातें समाज के तोड़ बंधन-दीवारें चलो अंतहीन दूरियों…
प्रिय संविधान पढ़ लेना तुम - कविता - रमाकान्त चौधरी
भारत में कैसे रहना है, कैसे कब क्या कहना है, ज़ुल्म भला क्यों सहना है, हक़ के लिए लड़ लेना तुम। प्रिय संविधान पढ़ लेना तुम॥ राष्ट्र क…