संदेश
पेड़ के साथ चली गई आत्मा - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'
गर्मी का दिन था एक बूढ़ा आदमी झोपड़ी में अकेला रहता था रोज़ दिनभर की मेहनत के बाद वह घर के सामने वाले पेड़ के नीचे थोड़ी देर आराम करता…
यार तुम भी कमाल करते हो - ग़ज़ल - निर्मल श्रीवास्तव
बहर : ख़फ़ीफ़ मुसद्दस मख़बून महज़ूफ़ मक़तू अरकान : फ़ाएलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1212 22 यार तुम भी कमाल करते हो बात कुछ बेमिसाल कर…
फिर वो गुमशुदा हो गया - नज़्म - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
लो आज शहर में, फिर वो गुमशुदा हो गया, घिर गया बादलों से, चाँद भी फ़ना हो गया। रात भर तो देखी मैंने, आसमाँ पर हलचलें, समझ पाता कुछ कि, …
संघर्ष - कविता - मदन लाल राज
जीवन बहुत कठिन है, हम जवान बच्चों को अब बुढ़ापे में समझाते हैं। पर क्या फ़ायदा! बचपन में हम ही उन्हें आत्मनिर्भर होने से बचाते हैं। अण्…
बुद्ध: करुणा और प्रज्ञा का संगम - लेख - सत्यजीत सत्यार्थी
भूमिका: चेतना के आलोक में बुद्ध का आह्वान मानव इतिहास के प्रवाह में कुछ व्यक्तित्व ऐसे भी उदित होते हैं जो युगों की सीमाओं को लाँघकर च…
आत्मबोध - गीत (लावणी छंद) - संजय राजभर 'समित'
कोई कठिन जादू नहीं तू, न ही सरल छू मंतर है। इधर-उधर न खोज रे! ख़ुद को, तू अपने ही अंदर है। तू ही चैतन्य, तू ही सत्य, तू शाश्वत ज्योति प…
योग - कविता - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
योग ही से जीवनी है योग ही देता सहारा। प्रात उठ कर श्वास खींचो और फिर बाहर निकालो। करो प्रणायाम प्रतिदिन नियम यह अविरल बनालो। आयुष्य लम…
अकेले रहे तो समझ आया - कविता - नाजिया
अकेले रहे तो समझ आया, सब कुछ तो था, बस कोई अपना नहीं था। ख़ामोशी ने दर्द का राज़ बताया, और तन्हाई ने ख़ुद से मिलवाया। टूटे ख़्वाब भी रास…
तुम लौटी तो, पर यूँ लौटना नहीं था - कविता - अदिति
मैं तन्हा था… लेकिन ख़ुश था — क्योंकि तुम्हारे लौटने की उम्मीद मेरे पास ज़िंदा थी। इंतेज़ार एक इबादत बन चुका था हर पल, हर घड़ी तुम्हारा…
हिंदी का लेखक - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
हिंदी के लेखक कभी सही समय पर नहीं बोलते। वे तब चुप रहते हैं, जब एक पूरी जाति को उजाड़ा जा रहा होता है, जब संविधान की पीठ पर सत्ता अपनी…
रहा हूँ मैं - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
ज़रा-सी बात कहनी थी... ज़रा-सा जर रहा हूँ मैं ख़ुद से मिलने की महफ़िल में सफ़-ए-आख़िर रहा हूँ मैं वक़्त का ही तक़ाज़ा है के बहुत सुलझा-सा हूँ…
मेरा अनुपात - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
मेरा अनुपात, तुमसे, सामंजस्य नहीं बिठा पाता। राहत की बात है, कोई शून्य नहीं हो पाता। बिखरी हुई सोच, और उनमें बिखरा व्यक्तित्व, अपने वि…
जो पहले था आज नहीं है - कविता - बिंदेश कुमार झा
आसमान आज भी बरस रहा है, कल पानी बरसा रहा था, आज आग है। आसमान भी काला है, चंद्रमा भी सफ़ेद चादर ओढ़ा होगा, आज उसमें भी दाग़ है। धरती का र…
अधूरे शब्द - कविता - प्रवीन 'पथिक'
धुंधलका होते ही बनने लगती विरह की कविताएँ एक छवि तैर जाती है ऑंखों में दिनभर की बेचैनी, आक्रोश, तपन केंद्रित हो जाती है– उस विरही कवित…
रिश्तों का दौर - घनाक्षरी छंद - महेश कुमार हरियाणवी
आया है ये वक्त कैसा रक्त नहीं रक्त जैसा। बेटा आज बाप को ही अर्थ समझाता है। चपर-चपर बोले सुनता ना हौले-हौले। जननी के सामने ना सर को झुक…
पिता: एक अनकहा संवाद - कविता - सुशील शर्मा
पिता कोई शब्द नहीं है, न ही कोई सम्बन्ध भर। वह तो एक अनदेखा प्रतिबिम्ब है जिसे हम तभी पहचानते हैं जब वह ओझल हो जाता है। वह जन्म नहीं …
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर