संदेश
न हो आशाएँ, जहाँ न हो विश्वास - कविता - राजेन्द्र कुमार मंडल
न हो आशाएँ, जहाँ न हो विश्वास, न उन्माद जीवन में फिर क्या आभास? ध्येय अगर जीवन की हो मोक्ष प्राप्ति की, हे प्राणी कर्मगुणी, त्याग मोह …
टूटने का दर्द - कविता - प्रवीन 'पथिक'
हृदय और मस्तिष्क में, दीर्घ काल से चल रहा अन्तर्द्वंद आदमी के विचार को शून्य और शिथिल कर देता है। आदमी का दर्द– और उसके भीतर उठने वाला…
अशोक और ओपेनहाइमर - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'
कौन कहता है अशोक पुरातन हज़ारों वर्षों का वह वासी? मैंने देखा उसे खड़ा हुआ रेगिस्तान में 20वीं सदी का साथी। जिसके आदेश पर तपते मरुस्थल …
मिट्टी के नीचे - कहानी - बापन दास
गहरी रात। खाट पर लेटे इधर-उधर कर रहा था। अचानक मानो फ़र्श से उठ आई वह आवाज़। एक मंद स्वर! सीटी की आवाज़, मानो कोई मिट्टी के नीचे से लगा…
भूलना - कविता - संजय राजभर 'समित'
उम्र के हिसाब से आदमी भूलने लगता है ज़रूरी भी है यह एक दवा है जीवन के अंतिम पड़ाव पर कुछ सुकून मिले क्योंकि इंसान फिर न लौट आने के पथ प…
वो अपने जो भेदी बन लंका ढहाते हैं - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना'
अपने ही घर के भेदी अक्सर वो जो बन जाते हैं, वही अन्ततः उस सोने की लंका को एक दिन ढहाते हैं। भूल जाते बातों को जिनका फ़ायदा दूसरे उठाते …
वासंती उल्लास - कविता - मयंक द्विवेदी
बीत गए दिन पतझड के कलियों तुम शृंगार करो मधुर मधु-सरिता छलका मधुकर पर उपकार करो नील गगन के नील नयन से शबनम की बौछार करो हरित कनक की लड…
शांत नदी - कविता - निवेदिता
एक अध्याय का प्रारम्भ, और धारा फूट जाती है, कई ढलानों को पार कर, टकराती-चोट खाती, लड़खड़ाती संभलती टूटती बिखरती, फिर एक होती जाती है। …
या जाने दें - कविता - राजेश 'राज'
सवाल तुम्हारे सुनें या अनसुने ही जाने दें सवालों में ही घुले जवाब ढूँढे़ या अनुत्तरित जाने दें मैं एक कशमकश में हूँ कि सवालों और जवाबो…
आ गया वसन्त है - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
नव कोपले हैं खिल उठी, कोयल ने छेड़ा राग है। नव कान्ति से शोभित हुआ, हर खेत और हर बाग़ है। अलसी के नीले फूलों से, सज गई हैं धरती माँ। सर…
सुन्दर बसन्त - कविता - निर्मल कुमार गुप्ता
सुन्दर बसन्त, मनभावन है, सुन्दर किसलय और पावन है। हर तरफ लरजती छटा निराली, हर मन मन्दिर में, छाई ख़ुशहाली। आज धरा का, नव शृंगार हुआ है,…
इन्हीं किन्हीं शब्दों में - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
इन्हीं किन्हीं शब्दों में तू और मैं बिखरे हैं, उपेक्षा से पीड़ित हो विराने में निखरे हैं। ऐ टूटे हुए ख़्वाबों, क्योंकर तुम्हें समेटें, …
बसंत का आगमन - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
जब मधुमास की मधुर गंध है बिखरती, वन-वन, उपवन, भूमि मुस्कान से संवरती। सरसों के खेतों में चंपई झलक है, धरती की चुनरी पर किरणों की महक ह…
वसंत पंचमी - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
शुक्लपक्ष दिन पञ्चमी, वासंती मधुमास। सरस्वती पूजन सविधि, अरुणिम ज्ञान प्रभास॥ करो कृपा माँ शारदे, मिटा त्रिविध मन पाप। सदाचार जीवन चरि…
सरस्वती वंदना - दोहा छंद - सुशील शर्मा
मातु शारदा आप हैं, विद्या बुद्धि विवेक। माँ चरणों की धूलि से, मिलती सिद्धि अनेक॥ झंकृत वीणा आपकी, बरसे विद्या ज्ञान। सत्कर्मों की रीति…
बुद्धि विवेक सृजन की देवी - गीत - उमेश यादव
बुद्धि विवेक सृजन की देवी, ज्ञान का विस्तार है। प्रज्ञा माता, माँ गायत्री, आपकी जय जय कार है॥ नवयुग की अरुणोदय वेला, नवल सृजन का शंख ब…
वसंत ऋतु सर्वश्रेष्ठ - कविता - गणपत लाल उदय
यह वसंत ऋतु लाई फिर से प्यारी-सी सुगन्ध, ये प्रकृति निभाती सबके साथ समान सम्बन्ध। यह जीने की वस्तुएँ सभी को उपलब्ध कराती, शुद्ध हवा एव…
वसंत आगमन - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
शीत ऋतु, कुहरे, जाड़े का, सन्नाटे का हुआ अंत। प्रकृति करती शृंगार अरे! देखो आया प्यारा वसंत॥ देखा प्रकृति को आज सुबह, चल रही पवन थी मं…
रखकर तो देखो कभी - दोहा छंद - मनोज कामदेव
रखकर तो देखो कभी, सूरज से संबंध। फैलेगी संसार में, तेरी भी यश गंध॥ गली-गली में बिक रही, भूख बेबसी लाज। देख कबीरा ध्यान से, कितना सभ्य …
स्मृतियाँ अनिमेष - कविता - सुशील शर्मा
साँझ-सवेरे स्तब्ध, अनिमेष, निर्वाक् नाद-मय, प्लावन शिशु की किलकारी-सा। अनाप्त, अद्रवित, अप्रमेय लोच, उल्लसित, लहरिल वहाब स्नेह से आलिप…
अभिमत - कविता - राजेश राजभर
सत्य का सत्कार हो, भू-धरा पर मानवता का शृंगार हो, भू-धरा पर। रह न जाए आखिरी -पंक्ति विरान, जन-जन का सम्मान हो-भू-धरा पर। रेत भरी रस्म…
तुम्हारी तस्वीर - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
देखी जो मैंने तुम्हारी तस्वीर, छलक उठा मन, हुआ अधीर। मुख चंद्र-सा, नयन कजरारे, जैसे हो फूलों के बीच सितारे। अधरों पर मृदु मुस्कान खिले…
जीवन - मुक्तक - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
अरे! 'अंशुमाली' लघु जीवन फिर भी चलते जाना है। नंद नाले कंटक वन गह्वर में भी बढ़ते जाना है। जीवन के पन बीत रहे हैं फिर भी संबल …
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