संदेश
आत्मा से कटे वाई-फ़ाई से जुड़े - कविता - सुशील शर्मा
हम अब एक-दूसरे के पास नहीं रहे, हाथ से हाथ छूटे नहीं, पर छूने की इच्छा मर चुकी है। बगल में बैठा इंसान अब बस एक स्थिति है न ज़िंदा, न म…
तलाश - कविता - प्रेम चेतना
हर जीवन की मौन कथा – तलाश। अशांति की गर्जना में शांति की प्यास, अकेलेपन के वीराने में प्रेम के आस। वेदना की राख में ईश्वर की झलक, और म…
संत और शैतान मैं ही हूँ - लेख - डॉ॰ सुनीता सिंह
संत कौन है...? हमारे मन में यही बात बार-बार उत्पन्न हो रही थी। रह रहकर अंदर से आवाज़ आती कि संत कौन है? क्या मैं हूँ संत? अगर मैं संत ह…
हामर छोटा नागपुर - खोरठा गीत - विनय तिवारी
हामर छोटा नागपुर हामर हीरानागपुर। हीरा मोती सेंताइल यहाँ माटीक तरें भरपूर माटिक तरें भरपूर। हामर छोटा नागपुर हामर हिरानागपुर हामर सोना…
सर, क्या आप ख़ुश हैं? - कहानी - आलोक कौशिक
राजीव वर्मा लखनऊ के एक निजी अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में गणित पढ़ाते हैं। योग्यता: स्नातकोत्तर, बी॰एड॰ वेतन: ₹14, 500 प्रति माह (12 मही…
खिल रहा जासौन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
सुनसान घर में साँकल बजा रहा है कौन। गूँजी सन्नाटे में तूती की आवाज़। उड़ रहा तोते की गर्दन दबोचे बाज़। कलरव बंद हुआ बाग़ में पसर गया मौन…
मैं पीले साँप की जात में शामिल हो गया हूँ - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
रात को सोया तो लगा जैसे बिस्तर कोई पुराना जंगल हो उसमें रेंगते हैं मेरे अपने पाप, मेरे ही पसीने से नम हुई घास, और एक पीला साँप — ठीक म…
पेड़ की महानता - कविता - राजेश राजभर
पेड़ किसी का मित्र नहीं होता परंतु "मित्र" पेड़ जैसा नहीं होता! मित्रता की मिठास– पेड़ अन्तिम साँस तक देता है, एक पेड़ ही त…
सावन की बरसात - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
ग्रीष्मातप सूखी धरा, छाया नभ घनश्याम। सावन की बरसात अब, बरस रही अविराम॥ रिमझिम मधुरिम बारिशें, भरे खेत खलिहान। प्रीत हृदय सावन मिलन, ख़…
तन्हाई - देव घनाक्षरी छंद - पवन कुमार मीना 'मारुत'
उमड़कर उदासी उन्मुनी उलझन-सी, उदास उधर उसे इधर इसको करत। वह वहाँ तड़पती तुम तमा तरसते, उदासी उनकी दिल दहलाती मन मरत। बनी बेडी़ बेरहम प्र…
मौन में प्रेम की वाणी हो तुम - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
जब नयन मौन होकर पुकारें तुम्हें, उन दृगों की कहानी हो तुम। छाँव बनकर मेरे पथ में चलो, इस धरा की रवानी हो तुम। शब्द बिन भी समझ लो हृदय …
शून्यगामी - कविता - रविना बर्त्वाल
हर कोई अपने विकल्पों का निर्धारण करता है कल्प अकल्प के मध्य विकल्प चुन ना मेरे मन को राज़ी नहीं। मैं स्वयं बुन ना चाहती हूँ राह अपनी प…
योद्धा - कविता - निखिल पाण्डेय श्रावण्य
दृग् ग़िलाफ़ करो तुम ग़ौर से देखो हैं कितने युद्ध लड़े हुए। मृत्यु हैं कितनी बार डराई फिर भी डटकर खड़े हुए॥ डर भी भयभीत है हमसे ज़रा निकट …
यात्रा और यात्रा का महत्व - यात्रा वृतांत - श्याम नन्दन पाण्डेय
कहते जीवन एक यात्रा है और जन्म से मृत्यु के बीच जीव यात्राएँ ही करता रहता है। अगर राजकुमार सिद्धार्थ यात्रा या नगर भ्रमण पर न निकलते त…
पेड़ के साथ चली गई आत्मा - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'
गर्मी का दिन था एक बूढ़ा आदमी झोपड़ी में अकेला रहता था रोज़ दिनभर की मेहनत के बाद वह घर के सामने वाले पेड़ के नीचे थोड़ी देर आराम करता…
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