आज की आधुनिकता हमें निरंतर चारों ओर से घेर रही है, चाहे रहन-सहन का ढंग हो, आदर सत्कार का रवैया हो, चाहे बातचीत करने का लहज़ा हो, सभी तौर तरीकों में आधुनिकता की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इन नए रवैयो तथा खुद को दूसरों के सामने बेहतरीन पेश करने के लिए किए जाने वाले नये नवेले नखरों को देखते हुए इस युग को "दिखावे तथा नखरों वाला युग" कहा जाए तो भी ये कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि आधुनिकता की जो चकाचौंध जो दावानल की भांति हमारे आचरण, ज़हन, विचारों पर जिस प्रकार हावी हो रही है उसके हिसाब से तो उपर्युक्त कथन पूर्णतः सटीक बैठता है।
आज के मानव जगत में हर कोई अपने को दूसरों से श्रेष्ठ बताने के लिए किसी न किसी रूप में अपने आप को प्रदर्शित करने का प्रयास करते हैं चाहे उसके द्वारा किए जाने वाले तौर तरीके सही हो या ग़लत। आज हर कोई अनजान लोगों को इम्प्रेश करने के लिए कई तौर तरीकों का उपयोग कर रहे हैं जिसके कारण मौलिक रिश्तों में दूरियां बढ़ती जा रही है, आज-कल हर व्यक्ति का रिश्तों को देखने का नजरिया लगातार बदलता जा रहा है।
आधुनिक रूप में रिश्तों में किसी न किसी निजी स्वार्थ की तलाश की जा रही है और किसी निश्चित हेतु (उद्देश्य) साधने तक खूब आत्मीयता प्रकट की जाती है फिर अपना काम निकलने के बाद उस रिश्ते को हमेशा के लिए गर्त में डाल देते हैं और फिर से नए रिश्ते ढूंढने की कोशिश में लग जाते हैं। जबकि सही बात तो यह है कि जिन रिश्तों को हम स्वार्थ की भावना से देखते हैं उन रिश्तों का तो कोई औचित्य ही नहीं है, उन्हें रिश्तों की संज्ञा देना सर्वथा गलत है।
आज युवा पीढ़ी सोशल मीडिया पर नए-नए मित्र खोजने व अपने फोलोअर्स बढ़ाने में, तथा घण्टों तक अपरिचित लोगों से चैटिंग करने में व्यस्त हैं जिससे व्यक्ति को अपने परिवार के साथ बैठने व सुख दुःख को बांटने के लिए फुर्सत ही नहीं है और अपने सगे-संबंधियों से नावाकिफ हो रहे हैं। आज का युवा सोशल मीडिया का इतना आदी हो गया है कि वे अपने छोटे से दुःख दर्द को तथा अपनी निजी बातें भी सोशल मीडिया पर बयां कर रहे हैं जबकि सुख दुःख में सच्चे भागीदार तो परिवारजन वाले होते हैं।
ये हैं आज की वास्तविकताएं।
देवासी जगदीश - कोडका, जालोर (राजस्थान)