दिन डूब गया स्याह रात हो गई!
शहर में आज बरसात हो गई!
बारिश ने हवाओं से कुछ कहा,
दिल से दिल की बात हो गई!
यादों के जब खुले झरोखे,
महबूबा से मुलाकात हो गई!
खिलने लगी उम्मीद की किरणें,
मिलन की अपनी रात हो गई!
मोहम्मद मुमताज़ हसन - रिकाबगंज, टिकारी, गया (बिहार)