खुशियाँ हों या ग़म - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"

मैं तुममें, तुम मुझमें प्रियतम
इक  दूजे  को  क्यों ढूँढें  हम

रोज़ मिलेंगे उसी तरह हम
पंखुड़ियों से जैसे  शबनम

हम -तुम  आपस  में  बाँटेंगे
दामन में खुशियाँ हों या गम

दिल से  दिल  की बातें होंगी
वक़्त मिले चाहे जितना कम

हम-तुम   दोनों  यूँ  हो  जाएँ
एक ज़ख़्म हो और इक मरहम

आओ आपस में  खो जाएँ
कहलाएँ हम सच्चे हमदम।।।।

ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)

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