पहली मुहब्बत - संस्मरण - संजय राजभर "समित"

सन दो हजार बारह में मैं सेलम (तमिलनाडु) में था। घर से बड़े भाई का फोन आया "तेरी शादी की लगन तय हो गई है। माँ तेरी शादी के लिए बहुत तनाव में रहती है उम्र तेरी बढ़ती जा रही है फिर कौन अपनी लड़की देगा, अधिक सोचने से माँ का ब्लड प्रेसर बढ़ जाता है। सुन अब ज्यादा नाटक मत करना, इक्कीस नवंबर को शादी तय है। अच्छा होगा तू दो-चार महिने पहले ही घर आ जाना।" मैं कुछ बोल न पाया सोचा था आजीवन स्वतंत्र रहूँगा "ठीक है" कहकर फोन रख दिया।

उस समय मेरे पास मोबाइल था पर उस लड़की के पास नही था और तो और वह बड़ी शर्मीली स्वभाव की। बात कैसे हो?  बारह-बारह घंटे कंपनी के शोरगुल में समय कटता गया। गाँव आया फिर भी बात नही हुई चूँकि शादी के दो दिन पहले आया था सोचा जाकर मिल लेता हूँ पर गाँव का सरहद लाँघना मनाही हो गया, अब क्या करूँ? उस समय वाराणसी में शादी की रात लड़की घूँघट में रहती थी पता नही चलता था किससे शादी हो रही है। चुपचाप घटनाक्रम सुहागरात की सेज तक ले गया। जब तक अतिथिगण विश्राम करते बारह बज चुका था, मैं अंदर गया तो देखा वह सो चुकी थी, क्या करूँ? सुनियोजित विचार वह पीने के लिए एक गिलास दूध देगी घूँघट उठाते समय शर्मायेगी पर सब कुछ बिगड़ गया। सोते हुए को जगाना ठीक नही इसलिए मैं भी चुपचाप सो गया। लगभग तीन बजे रजाई एक तरफ खिसक गई कड़ाके की ठंडी थी नींद खुल गयी। मैं उठकर रजाई दुरूस्त करने लगा तब तक वह भी उठ बैठी। दोनों हाथ से मुँह ढक ली। लज्जाशील मुखड़े को देखने के लिए धीरे-धीरे उसके हाथ चेहरे से हटाया और पहली मुहब्बत शुरू हुई। 

संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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