कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
शुक्रवार, नवंबर 12, 2021
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं,
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद।
Insaan Ki Khwahishon Ki Koi Intiha Nahin,
Do Gaz Zameen Bhi Chahiye Do Gaz Kafan Ke Baad.
जिस तरह हँस रहा हूँ मैं पी पी के गर्म अश्क,
यूँ दूसरा हँसे तो कलेजा निकल पड़े।
Jis Tarah Hans Raha Hoon Main Pee Pee Ke Garm Ashk,
Yoon Dusra Hanse To Kaleja Nikal Pade.
इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़े,
हँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े।
Itna To Zindagi Me Kisi Ke Khalal Pade,
Hansne Se Ho Sukoon N Rone Se Kal Pade.
मेरा बचपन भी साथ ले आया,
गाँव से जब भी आ गया कोई।
Mera Bachpan Bhi Saath Le Aaya,
Gaanv Se Jab Bhi Aa Gaya Koi.
रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई,
तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई।
Rahne Ko Sada Dahar Mein Aata Nahin Koi,
Tum Jaise Gaye Aise Bhi Jata Nahin Koi.
झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहीं,
दबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं।
Jhukee Jhukee Si Nazar Be-Qarar Hai Ki Nahin,
Daba Daba Sa Sahi Dil Mein Pyaar Hai Ki Nahin.
रोज़ बढ़ता हूँ जहाँ से आगे,
फिर वहीं लौट के आ जाता हूँ।
Roz Badhta Hoon Jahaan Se Aage,
Phir Wahin Laut Ke Aa Jaata Hoon.
कोई कहता था समुंदर हूँ मैं,
और मिरी जेब में क़तरा भी नहीं।
Koi Kehta Tha Samundar Hoon Main,
Aur Miri Jeb Mein Qatra Bhi Nahin.
बस्ती में अपनी हिन्दू मुसलमाँ जो बस गए,
इंसाँ की शक्ल देखने को हम तरस गए।
Bastee Mein Apni Hindu Musalman Jo Bas Gaye,
Insaan Ki Shakl Dekhne Ko Hum Taras Gaye.
पेड़ के काटने वालों को ये मालूम तो था,
जिस्म जल जाएँगे जब सर पे न साया होगा।
Ped Ke Kaatne Waalon Ko Ye Maloom To Tha,
Jism Jal Jaayenge Jab Sar Pe N Saaya Hoga.
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