क्या कभी ऐसा होगा - कविता - चीनू गिरि

क्या कभी ऐसा होगा,
मैं तुम्हें सोचू और तुम आ जाओ!

क्या कभी ऐसा होगा,
मैं तुम्हें सोचू और तुम्हें खबर हो जाएं!

क्या कभी ऐसा होगा,
तुम्हारा शहर हो हम हाथ मे हाथ लिए घूमे!

क्या कभी ऐसा होगा,
शाम हो, तुम हो और मेरा सिर तुम्हारे काँधे पे हो!

क्या कभी ऐसा होगा,
ख़्वाब मे नहींं मैं खुली आँखो से तुम्हें देखु!

क्या कभी ऐसा होगा,
तुम्हारा दिल जिसके लिए धड़के वो मै जाऊ!

क्या कभी ऐसा होगा,
हमारी ऐसी मुलाकात हो जो कभी खत्म ना हो!

क्या कभी ऐसा होगा,
तुम मेरा इंतजार करो मुझे मेरी तरह प्यार करो!

क्या कभी ऐसा होगा,
मेरी जिंदगी के हक़दार तुम
और तुम्हारी जिंदगी की हक़दार मैं हो जाऊ!

क्या कभी ऐसा होगा,
मैं तुम्हें एक ख्वाव समझकर भूल जाऊ!

क्या कभी ऐसा होगा,
और कभी ऐसा ना हुआ तो क्या होगा!

सच तो ये है ऐसा कभी नही होगा,
ना तुम मिलोगे, ना हम तुम्हें भूलेगें

क्या कभी ऐसा होगा,
मैं रोज सोचती हूँ
रेत पर ख्वावों का महल बनाती हूँ!

चीनू गिरि - देहरादून (उत्तराखंड)

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