संदेश
दामाद की ससुराल कथा - कविता - विजय कुमार सिन्हा
ससुराल में सासू माँ का प्यारा होता है दामाद। दामाद जो पहुँच जाए ससुराल घर के सारे लग जाते ख़ातिरदारी में। दामाद था बातों की जादूगर अ…
श्री काशी विश्वनाथ धाम - गीत - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
शंकर के त्रिशूल पर बसी, हे काशी, हो तुम कितने पावन धाम। 2 भोले बाबा जहाॅं स्वयं स्थापित कर, बनाए ज्योतिर्लिंग श्री काशी विश्वनाथ धाम। …
पर्यावरण - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
पर्यावरण है प्रकृति का आखर, सूरज, चंदा, धरती और बादर। प्रकृति का अद्भुत चहुँदिशि घेरा, चंदा डूबा फिर हुआ सवेरा। कौन इन सबसे अनजाना होग…
सुलगते जा रहे हैं - कविता - ऊर्मि शर्मा
हर सीढ़ी पर जाति पूछते हो क्यों? सभी को एक रख हर-सदी में सफलता श्रेष्ठता की सीढ़ीयों पे चढ़ना है मगर! त्रासद सत्य यह है कि हम बहुम…
तेरी आँखों में - गीत - गणेश दत्त जोशी
तेरी आँखों में सजा रखा है मैंने ख़्वाबों का संसार। अब तू चाहे बहा दें मुझे आँसुओ में, या लगा दे पार। तेरी आँखों में... मेरी हर बात तुझस…
मैं प्रकृति प्रेमी - कविता - रूशदा नाज़
मैं प्रकृति प्रेमी वो मेरी हमसाथी। मैं उदास हूँ, वो भी उदास हो जाती, मैं निराश हूँ, वो भी अश्क बहाती। उमड़ते-घुमड़ते बादल मेरे दु:खो क…
मैं बुनकर मज़दूर - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
मैं बुनकर मज़दूर हुनर मेरा लूम चलाना। मेरी कोई उम्र नहीं है... मैं एक नन्हा बच्चा भी हो सकता हूँ जहाँ मेरे नन्हे हाथों में किताब होनी च…
वसन्त का कैलेण्डर - कविता - डॉ॰ नेत्रपाल मलिक
दो तारीख़ों के बीच बीतते हैं जो युग उनका फ़ासला भी दीवार पर टँगा कैलेण्डर दिनों में बताता है फिसल जाती हैं जो तारीख़ें हाथों से चिपकी रह …
बादल अंबर में घिर आए - ग़ज़ल - अविनाश ब्यौहार
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती : 22 22 22 22 बादल अंबर में घिर आए, मौसम बारिश के फिर आए। लोग यहांँ पर आतुर होंगे, वाजिब है गर…
प्रेमिका - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
जन्मों का वादा था, राह में ही वो छोड़ गई। था नाज़ुक सा हृदय मेरा, जिसको वो तोड़ गई। प्राण बसे है तुझमें मेरे, ऐसी बातें करती थी। हर …
क़ैदी - कविता - कोमल बैनिवाल 'साहित्या'
मैं वो क़ैदी हूँ, जिसने सलाख़ें नहीं देखी। मैं वो पापी हूँ, जिसने पाप नहीं किया। मैं वो आसमाँ हूँ, जो ज़मीं पर बसता हूँ। मैं वो आँसू हूँ,…
मज़दूर की दशा - कविता - रूशदा नाज़
एक पहर, गर्मियों के दिन तमतमाते धूप में दूर एक मज़दूर को भवन बनाते देखा, झूलसती लू में न कोई छाया रंग-बिरंगी पगड़ी को देखा, ढुलकते सीकर…
मंज़िल करे पुकार - गीत - प्रशान्त 'अरहत'
मंज़िल करे पुकार ओ राही! प्रतिपल कदम बढ़ाए चल। चलना तेरा काम वक़्त से हरदम हाथ मिलाए चल। जो भी सुखद-दुखद घटनाएँ उनको अभी भुलाए चल। जो भी…
नफ़रत का बम फोड़ा जाए - ग़ज़ल - रज्जन राजा
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती : 22 22 22 22 नफ़रत का बम फोड़ा जाए, अपनों को ना छोड़ा जाए। मग़रूरी ने तोड़े हैं दिल, अब इसको भ…
बढ़ती भूख - कविता - महेश कुमार हरियाणवी
अन्न के ही अन्नदानों भारती के खलिहानों, धरती पुकारती है बैठ मत जाइए। बोल रही सर पर महँगाई घर पर, लुट रही लाज आज फिर से बचाइए। जिनसे है…
कहाँ हो तुम अनुपस्थित? - कविता - राजेश 'राज'
फूलों में जो मृदु सुवास है विमल इन्दु में जो उजास है मलय पवन जो लिए गीत है तटिनी का जो प्रिय संगीत है सबमें तुम हो पुलकित कहाँ हो तुम…
गाँव - कविता - संजय राजभर 'समित'
शहर में रहते हुए बीत गए पंद्रह साल हर वक़्त तनाव लेनदारी में देनदारी में पर सुकून कहाँ? दोनों बाँह फैलाए आया था शहर पूरी आत्मविश्व…
बुनकर - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
यह कविता पसमांदा मुसलमानों को आधार बनाकर लिखी गई है। हमारे देश में पसमांदा मुसलमानों की संख्या लगभग 85 प्रतिशत से अधिक है और यह समाज आ…
सुख की पूरकता - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
इंदिरा और आनन्द का एकलौता बच्चा पढ़ लिखकर अप्राप्त नश्वर भविष्य को सुनहरा बनाने निकल गया। माता-पिता के पास दर्जनों भृत्य रख-रखाव देखभा…
यादों के अवशेष - कविता - नीतू कोटनाला
सभ्यताओं का चेहरा तुम्हारे जैसा होता है जिसमें होते हैं मेहनत के अवशेष होती है वो गूढ़ भाषा जिसे समझा जाना मुश्किल है होते हैं वो दुख…
एक लज्जा भरी सुनहरी साँझ - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
शीतल सहज सुखद अस्ताचल रक्तिम, एक लज्जा भरी सुहानी शाम रे। श्रान्त क्लान्त दिनभर उद्यम अधिरथ, स्वागत प्राणी जग रत अविराम रे। अनुराग आश…
जवाँ मदहोश आँखों में - गीत - सुधीरा
जवाँ मदहोश आँखों में, छुपी है नीर की बदली, छुपी है नीर की बदली। ये अंदर से भरी हुई, ये दिखती है जो इक पगली, ये दिखती है जो इक पगली। जव…
लड़के - कविता - अमित श्रीवास्तव
बेटे के जन्म पर जश्न मनाया जाता है, कुल का दीपक है हर ओर जताया जाता है। दीपक सी रोशनी देते हैं, तो जलन क्या वे सहते नहीं? बस... वे लड़…
द्वंद - कविता - पालिभा 'पालि'
कुछ घटनाएँ अक्सर छोड़ देती है, मन में कुछेक सवाल, ये सवाल ही छेड़ देती है मन में अक्सर द्वंद, ये द्वंद उथल-पुथल मचा देती है पैदा करके …
नए-नए ये कॉलेज के दिन - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
नए-नए ये कॉलेज के दिन, कट न पाएँ यारो के बिन। नए-नए सब दोस्त मिले हैं, लगते मगर पुराने हैं। अपने-अपने से लगते हैं कोई नही बेगाने हैं।…
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