मैं प्रकृति प्रेमी - कविता - रूशदा नाज़

मैं प्रकृति प्रेमी
वो मेरी हमसाथी।
मैं उदास हूँ, वो भी उदास हो जाती,
मैं निराश हूँ, वो भी अश्क बहाती।
उमड़ते-घुमड़ते बादल मेरे दु:खो को देखते,
ठंडी हवाओं के झोंकों ने सबकुछ सम्भाल लेते।
वो मेरे दु:ख सुख की साथी,
मैं प्रकृति प्रेमी,
वो मेरी हमसाथी।
तुझ से ज़िंदगी में उमंग,
रंग बिरंगे सपने है,
मैं ख़ुश हूँ, वो भी मुस्कुराती।
बिना ख़ुदग़र्ज़ हुए मेरे संग रहती,
वो मेरे दु:ख सुख की साथी।
मैं प्रकृति प्रेमी,
वो मेरी हमसाथी।


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