नए-नए ये कॉलेज के दिन - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला

नए-नए ये कॉलेज के दिन,
कट न पाएँ यारो के बिन।

नए-नए सब दोस्त मिले हैं,
लगते मगर पुराने हैं।
अपने-अपने से लगते हैं 
कोई नही बेगाने हैं।

कभी हिफ़ाज़त कभी शरारत
करते हैं सब रात और दिन,
मन करता है जी भर जी लूँ
मस्ती करने वाले दिन।

नए-नए ये कॉलेज के दिन...

पहले पहल तो घबड़ाते थे,
रैगिंग से डर-डर जाते थे।
वही सीनियर अब लगते है,
भाई बहन औ गुरु समान।
कभी डाँटते कभी सिखाते,
कभी लुटाते सारा ज्ञान।

कैडेवर से डाइसेक्शन तक,
दौड़ भाग ये सारे दिन।
शुरू-शुरू की दो चोटी से,
आगे बढ़ने वाले दिन।

नए-नए ये कॉलेज के दिन...

गुरु देवों का नेह मिला है,
अच्छे कर्मों का ये सिला है,
अब ये जीवन खिला-खिला है।
मेस, होस्टल, क्लास, प्रैक्टिकल,
याद आएँगे फिर इक दिन।

सबसे न्यारे
नए-नए ये कॉलेज के दिन...

बचपन से अरमाँ थे अपने,
डॉक्टर बन जाने के।
मम्मी-पापा के ख़्वाबों को,
सुंदर पंख लगाने के।

पूरी करें उड़ाने अपनी,
मंज़िल पाने वाले दिन।
मानव सेवा करेंगे यारों,
देखेंगे ना रात या दिन।

नए-नए ये कॉलेज के दिन...


Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos