दामाद की ससुराल कथा - कविता - विजय कुमार सिन्हा

ससुराल में सासू माँ का प्यारा होता है दामाद। 
दामाद जो पहुँच जाए ससुराल घर के सारे लग जाते ख़ातिरदारी में। 
दामाद था बातों की जादूगर 
अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से 
ससुराल में वह सबका दिल जीत चुका था।
एक बार होली के कुछ पूर्व 
दामाद जी पहुँचे ससुराल। 
आराम से बैठ गए सोफे पर 
लेकर बड़ों का आशीर्वाद। 
दामाद जी अपने सासू माँ से बोले 
जिस तरह मेरी माँ इस उम्र में भी 
होली पर देतीं मुझे नए कपड़े 
आप भी तो हैं मेरी माँ। 
होली के दिन पहनने को दे दो
नए वस्त्र या ख़रीदने हेतु रूपए। 
घर में जब तक सास है
तभी तक दामाद को आस है।
मैं हूँ आपका दामाद। 
अधिकार से यह दामाद माँगता है
द माँ द
सासू माँ ने खोली तिजोरी 
रूपए ला रख दिए 
दामाद की हथेली।
साली जो होती है जीजा को प्यारी
उसका भी दिल जीजा जीत चुका था
पर वह साली थी बड़ी सयानी 
उसका था किसी से याराना। 
वह जीजा को भाव बहुत कम देती थी।
जीजा के लिए चाय पकौड़े बनाने 
साली गई रसोई घर में।
पकौड़े चाय लाकर रखा 
टेबल पर जीजा के सामने। 
गर्मागर्म पकौड़े देख 
जीजा जी ने उठा लिए झट से दो पकौड़े 
पहला निवाला 
लिया हीं था मुँह में 
जीजा हो गया परेशान। 
क्योंकि उसका मुँह लगा 
अंदर-अंदर नोचने।
चेहरे पर छलक आए पसीने। 
समझ में नहीं आ रहा था क्या करें?
दामाद की परेशानी देख 
सासू माँ ने डाँट लगाई अपनी बेटी
स्वीटी को।
बोली, तुमने पकौड़े में ईतनी मिर्च क्यों मिलाई?
स्वीटी बोली, मैंने तो मिर्च मिलाई ही नहीं।
आलू की जगह मैंने तले ओल के पकौड़े।
ओल का नाम सुनते ही
दामाद जी भागे घर के बाहर। 
दरवाज़े पर बैठा था घर का कुत्ता।
हाथ में लिए पकौड़े और मुँह में पड़े पकौड़े को दामाद जी ने 
फेंक दिया उसे कुत्ते के आगे। 
कुत्ता उसको झठ से खा गया।
पर, वह दामाद जी से भी ज़्यादा परेशान हो गया।
लगा भौंकने और ज़मीन पर
अपना मुँह पटकने।
उसकी हालत देख 
दामाद जी भी हो गए परेशान। 
इतने में सासू माँ नींबू के चार छः टुकड़े प्लेट में लेकर दामाद जी को दिए और बोला,
इसको आप रगड़ लें जीभ पर 
जलन हो जाएगी कम।
एक नींबू का टुकड़ा दामाद जी ने
ममतावश फेंका कुत्ते के आगे 
ताकि नींबू खाने से उसके मुँह की भी जलन हो जाए कम।
दामाद जी 
के हाथों फेंके गए नींबू को देख 
तेज़ी से उठकर कुत्ता
भागा सड़क की ओर 
पलभर में हो गया नज़रों से दूर।
अपने जीभ पर नींबू रगड़कर 
दामाद जी भागे शहर की ओर
बस पड़ाव पर जाकर लिया दम।
बस में बैठ चल दिए अपने घर। 
दामाद जी तो ससुराल जाने का रास्ता हीं गए भूल।
साली के विवाह के मौक़े पर 
दामाद जी पहुँचे ससुराल के द्वार। 
ज्योंही गाड़ी से नीचे उतरे 
दरवाज़े पर बैठे कुत्ते की नज़र 
दामाद जी पर पड़ी।
दामाद जी को देखते ही 
लगा वह जोर-जोर से भोंकने 
और भागा सड़क की ओर
हो गया वह नजरों से दूर। 
विवाह में जितने दिन दामाद जी
रहे ससुराल में,
कुत्ते को जब कुछ देते खाने को 
खाने की तरफ़ बिना देखे
वह हो जाता था नज़रों से दूर। 
दामाद जी की ससुराल कथा 
यहीं हो गई अब ख़त्म।
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