क़ैदी - कविता - कोमल बैनिवाल 'साहित्या'

मैं वो क़ैदी हूँ,
जिसने सलाख़ें नहीं देखी।
मैं वो पापी हूँ,
जिसने पाप नहीं किया।
मैं वो आसमाँ हूँ,
जो ज़मीं पर बसता हूँ।
मैं वो आँसू हूँ,
जिसने आँखें नहीं देखी।
मैं वो क़ैदी हूँ,
जिसने सलाख़ें नहीं देखी।

मैं वो सच्चाई हूँ,
जो सच ना बोल पाई।
मैं वो गवाही हूँ,
जो चैन से झूठ ना बोल पाई।
मैं वो फ़रिश्ता हूँ,
जो कभी बन ना पाया।
मैं वो सफ़र हूँ,
जो कभी थम ना पाया।
मैं वो नदी हूँ,
जो किसी ने बहते नहीं देखी।
मैं वो क़ैदी हूँ,
जिसने सलाख़ें नहीं देखी।

मैं वो सूरज हूँ,
जो कभी ढल ना पाया।
मैं वो चंदा हूँ,
जो कभी निकल ना पाया।
मैं वो तप हूँ,
जो कभी जल न सका।
मैं वो शीत हूँ,
जो कभी जम न सका।
मैं वो छाया हूँ,
जो कोई पा न सका।
मैं वो ज़िंदगी हूँ,
जिसने यादें नहीं देखी।
मैं वो क़ैदी हूँ,
जिसने सलाख़ें नहीं देखी।

कोमल बैनिवाल 'साहित्या' - हिसार (हरियाणा)

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