पर्यावरण - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी

पर्यावरण है प्रकृति का आखर,
सूरज, चंदा, धरती और बादर।
प्रकृति का अद्भुत चहुँदिशि घेरा,
चंदा डूबा फिर हुआ सवेरा।
कौन इन सबसे अनजाना होगा,
पर्यावरण को सदा बचाना होगा।

अंबर नीला, पीले खेत,
कल-कल नदियाँ सफ़ेद रेत।
समंदर गहरा, ऊँचा पहाड़,
लपटी लता और पेड़-ए-ताड़।
कौन इन सबसे अनजाना होगा,
पर्यावरण को सदा बचाना होगा।

जंगल-झाड़ी, सुंदर बयार,
पतझड़ोपरांत बसंती बहार।
बरसती बूँदे औ हल्के झोंके,
मदमस्त पवन को थोड़ा रोके।
कौन इन सबसे अनजाना होगा,
पर्यावरण को सदा बचाना होगा।

ताल-तलैया, नीम की छैया,
वन में मोर की ता-ता थैया।
प्रकृति का अनमोल उदाहरण,
गाँव का घर और पर्यावरण।
कौन इन सबसे अनजाना होगा,
पर्यावरण को सदा बचाना होगा।

कोयल की कुकू, गौरैया की चीं-चीं,
प्रकृति ने दायरे की है रेखा खींची।
गोधूलि बेला, रात और शाम,
प्रकृति प्रदत्त का हर एक नाम।
कौन इन सबसे अनजाना होगा,
पर्यावरण को सदा बचाना होगा।

सिद्धार्थ गोरखपुरी - गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

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