बढ़ती भूख - कविता - महेश कुमार हरियाणवी

अन्न के ही अन्नदानों
भारती के खलिहानों,
धरती पुकारती है
बैठ मत जाइए।

बोल रही सर पर
महँगाई घर पर,
लुट रही लाज आज
फिर से बचाइए।

जिनसे है आस वहीं
दास बन जाए नहीं,
भूख का बबाल भाल
जीत के दिखाइए।

ये जनता का मन है
जो करती नमन है,
भूखा ना तिरंगा सोए
खेत लहराइए।


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