कहाँ हो तुम अनुपस्थित? - कविता - राजेश 'राज'

फूलों में जो मृदु सुवास है 
विमल इन्दु में जो उजास है
मलय पवन जो लिए गीत है
तटिनी का जो प्रिय संगीत है
सबमें तुम हो पुलकित
कहाँ हो तुम अनुपस्थित?

सागर की जो धड़कन है
भूधर की जो जकड़न है
खगकुल का जो कलरव है
विभावरी में जो नीरव है 
सबमें तुम हो व्यवस्थित
कहाँ हो तुम अनुपस्थित?

जवाँ दिलों में जो कंपन है
मेरे मन में जो सिहरन है
सदैव तुम्हारा ही एहसास है
लगता हरपल तू आसपास है
ये जीवन तुमसे स्पंदित
कहाँ हो तुम अनुपस्थित?

राजेश 'राज' - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)

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