डॉ॰ अबू होरैरा - हैदराबाद (तेलंगाना)
बुनकर - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
शनिवार, मई 27, 2023
यह कविता पसमांदा मुसलमानों को आधार बनाकर लिखी गई है। हमारे देश में पसमांदा मुसलमानों की संख्या लगभग 85 प्रतिशत से अधिक है और यह समाज आज एकदम हाशिये पर खड़ा है।
कपड़े का कारीगर कौन?
मैं।
कपड़े पर की गई कारीगरी किसकी?
मेरी।
कपड़े का सौदागर कौन?
तुम।
कपड़े की कमाई खाने वाले तुम,
कपड़ा पहनने वाले तुम,
कपड़े की कारीगरी से सुंदर दिखने वाले भी तुम,
तुम्हें सुंदर बनाने वाला कौन?
वही,
जिसके तन पर कपड़ा नहीं है।
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