शीतल सहज सुखद अस्ताचल रक्तिम,
एक लज्जा भरी सुहानी शाम रे।
श्रान्त क्लान्त दिनभर उद्यम अधिरथ,
स्वागत प्राणी जग रत अविराम रे।
अनुराग आश नव प्रीत सजन मन,
बाट जोह रही रमणी अभिराम रे।
रतिराग हृदय आलिंगन प्रिय मन,
बैठी विरहिणी सुनहर शाम रे।
मुस्कान अधर रक्ताम्बर नभ पश्चिम,
मधुर कलरव साँझ विहग अभिराम रे।
चहुँ ओर शान्ति आनंदित मन प्रियतम,
वन पादप पशु खग मानव विश्राम रे।
स्वकार्य पूर्ण कर गृह आगम प्रियजन,
देख बाट कुटम्बी रत अविराम रे।
अनिवार्य ज़रूरत क्रय गृह वस्तु सकल,
लखि शाम समागत प्रिय सुखधाम रे।
चन्द्रोदय लखि उत्साहित प्रिय चितवन,
शर्मीली मुख नैन नशीली शाम रे।
मधु यामिनी सुरभित मकरन्द पुष्प रस,
जले दीप ज्योति पूजन हरिनाम रे।
चलो सजाएँ महफ़िल शाम सुहानी,
आलिंगन परिणीति हृदय अभिराम रे।
सुनहरी मिलन शाम सजनी अभिलाषी,
बनाएँ मनमीत मनोहर शाम रे।
डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' - नई दिल्ली