मैं एक लम्हा भी ख़ुद से न मिल सका तन्हा - ग़ज़ल - समीर द्विवेदी नितान्त

अरकान : मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
तक़ती : 1212  1122  1212  22

मैं एक लम्हा भी ख़ुद से न मिल सका तन्हा,
वो मेरे साथ रहा जब भी मैं हुआ तन्हा।

पनाहगार रहा जो तमाम नस्लों का,
बिछुड़ के पत्तों से वो पेड़ है खड़ा तन्हा।

ऐ चाँद तारों ज़रा तुम भी साथ आ जाओ,
अँधेरी रात से जुगनू ही लड़ रहा तन्हा।

वो जिसके पीछे कभी कारवाँ चलते थे,
वो आज राह में बेबस खड़ा मिला तन्हा।

वफ़ा की राह पे चल तो रहा है तू लेकिन,
ये तय है ख़ुद को तू जल्दी ही पाएगा तन्हा।

समीर द्विवेदी नितान्त - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)

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