संदेश
पूनम का चाँद - कविता - अतुल पाठक "धैर्य"
आज पूनम है नज़र आता चाँद, शरद ऋतु का गज़ब ढाता चाँद। कभी घटता तो कभी बढ़ जाता है, चन्द्र कलाएँ नित नई-नई करता है। पूर्ण चाँद आज की शाम ही…
शरद पूर्णिमा महारास वाली - कविता - सुनीता रानी राठौर
शुक्ल पक्ष में आश्विन मास का पूर्णिमा, कहलाती महारास वाली शरद पूर्णिमा। आह्लादित है चटक चाँदनी चंद्र किरणें, शीतल अमृत बरसाती है शरद प…
इधर दिखाई मत पड़ना - कविता - डॉ. कुमार विनोद
कूड़े की ढ़ेर पर पॉलिथीन व कचरे पर उगा हुआ वह बालक न जाने किस जन्म से अपनी किस्मत चुन रहा है कूड़े की ढ़ेर पर। सर्व शिक्षा ,कम्प्यूटर शिक्…
शरद ऋतु का चाँद - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
शरद ऋतु का चाँद करे पुलकित अरमान चीरता अंधकार मन का दिखता उजियारा चहु ओर मन मयूर नाच उठा ले चन्दन सी आभा स्वेत रंग बरसाए उजास जैसे …
बगावत के बादशाह - हास्य व्यंग्य लेख - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
भई चुनावी बयार में तो अच्छे-अच्छे बहक जाते हैं हम तो पहले से ही बगावती बादशाह हैं शुभचिंतक तो जनता के ही है ना, कुर्सी तो एक बहाना है …
इंतज़ार - कविता - संजय राजभर "समित"
गजब की छुअन थी रोमांचित था तन-मन, हया आँखों में थी आग दोनों तरफ थी। चुप्पी थी फिर भर न जाने क्यूँ हम दोनों रुके थे इंतज़ार था दोन…
इश्क़ अभी बाकी है - कविता - अरविन्द कालमा
आँखों में काजल, होठों पर लाली लगाती है जमाना कहता है वो सोये इश्क़ को जगाती है। इस जमाने ने इश्क़ की कीमत अभी आंकी है जमाना क्या जाने हम…
रुबरु - कविता - मास्टर भूताराम जाखल
ऐ इन्सान हो तू जरा सत्य से रुबरु, सत्य ही सत्य है जो बचाए आबरू। झूठ प्रपंच पाखंड से रह सदा दुर, ना कर तू अंधविश्वास को मजबूर। ऐ नर तू …
मैं अपने लहू से लिख सकूँ - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
मैं तेरे प्यार में पागल आज, एलान अभी करता हूँ सरेआम। मैं अपने लहू से लिख सकूँ तो, दिल पर बस तेरा ही एक नाम। मेरे लिए इस जहां में क…
क्या दो ही थे हैवान? - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
यह कविता समाज के उन लोगों को समर्पित है जो समाज में सामने होते अत्याचार पर मात्र तमाशा देखते रहते हैं मदद की कोई कोशिश नहीं करते। बल्ल…
विजय पर्व हो शान्ति का - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
परमारथ सुख शान्ति लोक में, यश विजय दीप आलोक कहूँ। विजयपर्व यह सत्य न्याय का, दशहरा या रामराज्य कहूँ। कलियुग के इस व…
विजय पर्व - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
हम सब हर साल रावण के पुतले जलाते हैं विजय पर्व मनाते हैं, शायद मुगालते में हम खुद को ही भरमाते हैं। वो सतयुग था जब राम ने रावण को मार…
हे पार्थ - कविता - डॉ. अवधेश कुमार अवध
हे पार्थ! उठो गांडीव गहो, अब कृष्ण न आने वाले हैं। यह युद्ध तुम्हारा अपना है, पांडव - उर में सौ छाले हैं।। जिस मोह जाल में हो निमग्न, …
राम-राज को क्यों करते बदनाम - कविता - बजरंगी लाल
इस राम-राज का अब तक था मैं, सुनता बड़ा बखान, जहाँ नहीं है कोई सुरक्षित माँ, बेटी, बहन व जवान, इसी राम-राज में लूट रहे हैं, इज्ज़त कुछ …
नसीहत - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
सूबे में ऐसी सरकार चुनिए। शासक नहीं सेवादार चुनिए। आवाम का सुख दुख महसूस हो, जुल्म के खिलाफ प्रतिकार चुनिए। रोटी, कपड़ा…
सूरज का अभिनंदन - कविता - मयंक कर्दम
आसमान भी तरस गया, कोयल की आवाज सुनने को। धरती में पानी से भीग गई, कोयल के साथ गुनगुनाने को।। कलियाँ भी खिल गई, सूरज को मुख दिखलाने क…
विक्रम बेताल संवाद - कविता - डॉ. राजेन्द्र गुप्ता
जब सितम्बर 1995 में पूरे भारत की गणपति मूर्तियों ने दूध पिया था। दुग्ध पान का लगा जब श्री गणेश को चाव। नंदीश्वर शामिल हुए उनको आया ता…
रावण - कविता - प्रीति बौद्ध
तुम हर बार किडनैपर रावण जलाते हो, और वर्तमान बलात्कारियों से रिश्ता निभाते हो। रोज हो रहे हैं बलात्कार, चारों तरफ है हाहाकार। बेटियों …
चली डोली अरमानों की - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
चली डोली अरमानों के सुनहले पथ, सजा ख्वाव खूबसूरत ले अफ़साने। भावों को समेटे अन्तर्मन स…
देर हो गई हैं - कविता - कर्मवीर सिरोवा
उम्र तमाम राहें ठहकर पक सी गई है, मिरे अजीजों के घर दुल्हन आ गई है, बादलों की रंगत कुछ पहले आ गई हैं, अनचाही पुष्पा मिरे सर पर बैठ गई …
जीवन घुँघरू है - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
इस दिल में बस तू ही तू है साँसों में तेरी खुशबू है अहसासों की हलचल में तू तू इक प्यारा -सा जादू है तुझमें दो-दो रूह छुपी हैं तू…
प्रकृति में आओ - गीत - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
प्रकृति में आकर समाकर तो देखो मिट्टी को माथे पर लगा कर के देखो मन भीग जाये और हृदय भीग जाए रिमझिम बारिश में नहाकर तो देखो कभी मयूर बन…
पछतावा था - कविता - कुन्दन पाटिल
प्रेम का भुत जब उतरा था कुछ कुछ होश मुझे आया था कुछ समझ भी मेरी तब बढ़ी थी यह तो प्रेम नहीं! मुझे ऐसा लगा था वासना लालसा का आकर्षण मात…
मैं भी कवि बनूँगा - कविता - शिवम् यादव "हरफनमौला"
एक दिन मैं भी भारत की उभरती छवि बनूँगा। कवि बनूँगा, कवि बनूँगा, मैं भी कवि बनूँगा।। आज से अपने लक्ष्य के पथ पर, चलना हमने ठान लिया है…
मित्रता - कुण्डलिया छंद - प्रवीन "पथिक"
जीवन में ग़म बहुत है, लेकिन है इक बात। सारे ग़म कट जाते हैं, यदि हो मित्र का साथ। यदि हो मित्र का साथ, सुख दुःख में काम आए। धैर्य, …
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर