प्रकृति में आकर समाकर तो देखो
मिट्टी को माथे पर लगा कर के देखो
मन भीग जाये और हृदय भीग जाए
रिमझिम बारिश में नहाकर तो देखो
कभी मयूर बन कर पंख फैलाकर तो देखो
प्रकृति में आकर समाकर तो देखो।
हवा बन कर बह जाओ समन्दर किनारे
छू कर झुमाओ हंसे ये तरूवृन्द सारे
बादल बनकर कभी आओ घुमड़ कर
बरस जाओ खुल कर धरती के तन पर
कभी पपीहा बन बसंत को बुलाकर तो देखो
प्रकृति में आकर समाकर तो देखो।
प्रकृति की गोद में है हृदय की तरंगे
समन्दर की लहरों संग लहराकर तो देखो
इन वृक्षो लताओं में कितनों का घर है
बया बन कर एक घोंसला बन कर तो देखो
भोंरा बन कर गुनगुनाओ फिर मन का गीत
प्रकृति में आकर समाकर तो देखो।
धीरे से आना प्रात पुरवाई पवन संग
फिर कमल दल बन सूर्य रश्मि में मुस्काओ
तितली बन फूलों की खुशबू में आओ
सतरंगी पखो को हवा में फिर फैलाओ
पंछी के घोंसले में खुद को छुपाकर तो देखो
प्रकृति में आकर समाकर तो देखो।
सूर्य मणि दूबे "सूर्य" - गोण्डा (उत्तर प्रदेश)