उम्र तमाम राहें ठहकर पक सी गई है,
मिरे अजीजों के घर दुल्हन आ गई है,
बादलों की रंगत कुछ पहले आ गई हैं,
अनचाही पुष्पा मिरे सर पर बैठ गई हैं,
दिल की निगह में बसा कोई माज़ी हैं,
उसके संग ख़्वाब देखूँ लत लग गई हैं,
मयस्सर गूँजती सदाएं मिरे यार की हैं,
कूचों में हँसती यादें अब चुप हो गई हैं,
उनतीस वां जन्मदिन पास आ गया हैं,
मिरी नज़र संध्या रानी पर टिक गई हैं,
आसमाँ की ओर तारों को टुकर रहा हूँ,
'कर्मवीर' चाँद निकलने में देर हो गई है...
कर्मवीर सिरोवा - झुंझुनू (राजस्थान)