एक दिन मैं भी भारत की उभरती छवि बनूँगा।
कवि बनूँगा, कवि बनूँगा, मैं भी कवि बनूँगा।।
आज से अपने लक्ष्य के पथ पर,
चलना हमने ठान लिया है।
दूसरों के सहारे पर टिकने के,
उत्तर को हमने जान लिया है।
गुरु (कलम) को छोड़कर नहीं ज़रूरत है इस दुनिया कि,
क्योंकि आज हमने खुद से,
आत्मनिर्भर बनने का ज्ञान लिया है।
मैं कहता हूँ कि, एक दिन मैं भी भारत की उभरती छवि बनूँगा।
कवि बनूँगा कवि बनूँगा मैं भी कवि बनूँगा।।
ऐ पथ पर आने वाली बाधाओं,
तुम ऊंची हो या नीची हो।
मैं करूँगा सामना डटकर के,
तुम आधी हो या समूची हो।
अाज हमने सौगंध यूं खा ली है,
कि पीछे नहीं हटेंगे हम।
भले ही डूब जाएं पर तेरी,
बहती दरिया को पार करेंगे हम।
अभी आग सा जल कर के,
एक दिन चमकता रवि बनूँगा।
कवि बनूँगा, कवि बनूँगा, मैं भी कवि बनूँगा।।
शिवम् यादव "हरफनमौला" - लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश)