इश्क़ अभी बाकी है - कविता - अरविन्द कालमा

आँखों में काजल, होठों पर लाली लगाती है
जमाना कहता है वो सोये इश्क़ को जगाती है।
इस जमाने ने इश्क़ की कीमत अभी आंकी है
जमाना क्या जाने हमारा इश्क़ अभी बाकी है।।

आजकल वो अपने हुस्न पर भाव खाती है
पर मुझे देख क्यों फिर गीत प्रेम के गाती है।
समंदर है नजाकत का वो भाव तो बस झांकी है
जज़्बात उसके बताते हैं कि इश्क़ अभी भी बाकी है।।

जब लहराकर चलती खनकती है उसकी पायल
मेरे दिल-ए-दुश्मन  करती खंजर  से घायल।
तेरा रूहानी  प्यार  मेरे साथ मैंने सुना की 'है'
ए सनम! रूक जा, हमारा इश्क़ अभी बाकी है।।

करीब नहीं आती, तभी धड़कने धीरे चलती है
कहते है वो करीब आती है तो साँसे फूलती है।
जिस्म पर इश्क़ की पहन रखी उसने खाकी है
आना होगा करीब उसे, मेरा इश्क़ अभी बाकी है।।

वो इश्क़ करने वालों की जमानत करवाती है
अरे वो तो प्रेम पत्र भी अब झूठे लिखवाती है।
कमबख्त उसने इश्क़ की गाडी अभी हांकी है
जाकर बता दो उसे मेरा इश्क़ अभी बाकी है।।

गुलों से गुलजार है उसके हुस्न का प्यारा खेत
चमकता है चाँदनी रात में, जैसे रेगिस्तानी रेत।
धवल प्यार की ऋतू चढनी उसे अभी बाकी है
चाँदनी रात में आजा, मेरा इश्क़ अभी बाकी है।।

अरविन्द कालमा - साँचोर, जालोर (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos