शरद ऋतु का चाँद - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"

शरद ऋतु का चाँद 
करे पुलकित अरमान
चीरता अंधकार मन का
दिखता उजियारा चहु ओर
मन मयूर नाच उठा 
ले चन्दन सी आभा
स्वेत  रंग बरसाए उजास
जैसे ओढ़ी चुनरिया आज
चमके झिलमिल सितारे
जगाये मन में प्रीत सारे
अमृत बर्षा करता आकाश
पूरी कर लो अपनी आस
दिव्य वातावरण की सर्जना
भर लो अंजुली सब जन
बदला युग संसार
न बदली छटा तुम्हारी
फैला रही शारदीय छटा
शुभ स्वेत चाँद सरोवर
फूटे जैसे धरती धरोहर
मानो गंगा बह रही
पापों  को धो रही
शरद पूर्णिमा के मयंक
निकले रजत रश्मियों
बना जीवन में अनन्त
करें दूर अनगिनत भ्रांतियां

अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी" - कानपुर नगर (उत्तरप्रदेश)

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