रावण - कविता - प्रीति बौद्ध

तुम हर बार किडनैपर रावण जलाते हो,
और वर्तमान बलात्कारियों से रिश्ता निभाते हो।
रोज हो रहे हैं बलात्कार,
चारों तरफ है हाहाकार।
बेटियों की है चीख-पुकार,
असहनीय है चीत्कार।।
तुम बार-बार सताते हो,
और वर्तमान बलात्कारियों 
से रिश्ता निभाते हो।
तुम हर बार किडनैपर रावण जलाते हो।।

पंडित रावण को जाते हो जलाने,
बुराई पर अच्छाई की जीत बताने।
शैतानी दिमाग भी ले जाते हो,
गंदी हरकतों से बाज न आते हो।।
और वर्तमान बलात्कारियों से रिश्ता निभाते हो।
तुम हर बार किडनैपर रावण जलाते हो।।

नैतिकता पाक-साफ होने का ढोंग करते हो,
चलती बच्ची को सम्मानित न समझते हो।
खुद के अंदर का रावण क्यों न जलाते हो?
बहन बेटियों को बेआबरू करते- कराते हो।।
और वर्तमान बलात्कारियों से रिश्ता निभाते हो,
तुम हर बार किडनैपर रावण जलाते हो।
और वर्तमान बलात्कारियों से रिश्ता निभाते हो।।

प्रीति बौद्ध - फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश)

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