इधर दिखाई मत पड़ना - कविता - डॉ. कुमार विनोद

कूड़े की ढ़ेर पर
पॉलिथीन व कचरे पर
उगा हुआ वह बालक
न जाने किस जन्म से
अपनी किस्मत चुन रहा है
कूड़े की ढ़ेर पर।
सर्व शिक्षा ,कम्प्यूटर शिक्षा
सरकार -परधान -प्रधानाध्यापक
के मिली भगत से
पक रही खिचड़ी से बेखबर 
आज भी एकदम  बेखबर 
मैले - कुचैले - फटे - अधनंगे
कपड़े में वह बालक 
स्कूल गेट के पास आकर रूक
जाता है।
जहाँ आज प्रघानाध्यापक द्वारा
ड्रेस वितरित की जानी है।
परधान द्वारा खीर पूड़ी खिलायी जानी है।
शत प्रातिशत उपस्थिति के बीच 
द्दात्रवृति  बॉटी  जानी  है।
मंत्री जी द्वारा फल बॉटकर 
बाल दिवस मनाया जाना है।
तभी एक अध्यापक की नजर उस
बालक पर पड़ जाती है।
जोरदार तमाचा गालों पर जड़ देता है वह 
उसे होश ठिकाने लगाने के लिये
भाग जाओ -
जब तक मंत्री जी
डिप्टी साहब 
मुआयना करके
यहाँ से चले नहीं जाते
इधर दिखाई मत पड़ना।

डॉ. कुमार विनोद - बांसडीह, बलिया (उत्तर प्रदेश)

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