विक्रम बेताल संवाद - कविता - डॉ. राजेन्द्र गुप्ता

जब सितम्बर 1995 में पूरे भारत की गणपति मूर्तियों ने दूध पिया था।

दुग्ध पान का लगा जब श्री गणेश को चाव। 
नंदीश्वर शामिल हुए उनको आया ताव।।
ए राजन! बढ़े दूध के भाव।
बिजली सी व्यापी यहां बात बात मै बात।
शुरू कहां से हुई ये कोऊ नहीं बतात।।
ए राजन! शंका नहीं सुहात।
उल्लासित उत्सुक सभी पहुंचे मंदिर सोए।
दुग्ध ले गई भीड़ में धक्कम धक्का होय।।
ए राजन! भूखा शिशु घर रोय।
संचारी माध्यम सभी हुए सक्रिय गति तेज।
इसी बात में भर दिए अख़बारों ने पेज।।
ए राजन! उनको क्या परहेज़।
वैज्ञानिक बतला रहे बैज्ञानिक सिद्धांत।
जन मन में नहिं पैठते सभी लोग हैं भ्रांत।।
ए राजन! है मन अभी अशांत।
देखा सुना न पूर्व में क्या होगा परिणाम?
क्या साधक का कृत्य यह फैलाने निज नाम।
ए राजन! हैं उलझनें तमाम।
अल्प ज्ञात इस जगत में अरु असीम अज्ञात।
आध सेर के पात्र में कबहुं न सेर समात।।
ए राजन! कैसे हो हल बात?
साक्षी हो जीवन जिएं सतत करें सत्कर्म।
ज्ञानी जन निर्देश दें जिन पाया यह मर्म।।
ए राजन! यही श्रेष्ठ निज धर्म।
ज्यों ज्यों सुलझें उलझते सुन गुन कर भरमात।
निर्विचार  मन परम प्रभु सत्ता सों जुड़ जात।।
ए राजन! सहज सुलभ बिधि ज्ञात।

डॉ. राजेन्द्र गुप्ता - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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