क्या दो ही थे हैवान? - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"

यह कविता समाज के उन लोगों को समर्पित है जो समाज में सामने होते अत्याचार पर मात्र तमाशा देखते रहते हैं मदद की कोई कोशिश नहीं करते।
बल्लभगढ़, फरीदाबाद में लड़की के साथ (26 अक्टूबर 2020 को) खीचातानी होती रही मगर किसी ने बीचबचाव नहीं किया, अगर किसी के अपने परिवार की बेटी के साथ ऐसा हो तो क्या आप चुप रहेंगे, क्या आप उन लोगों को दोषी नहीं मानते? क्या आप उन्हें सामाजिक अपराधी नहीं मानेंगे? 
यह कविता उस बेटी को श्रद्धांजलि है।

बल्लभगढ़ का वो रास्ता 
नहीं था सूनसान
कुछ और भाई बाप
मगर देखते रहे बेजुबान 
जरा सोचिए और बताइये
दो ही थे क्या हैवान? 

चलो बेटी किसी की घिरी
बाप भाई अन्दर का जगा नहीं
पर गोली ने ले लिए प्राण
नहीं जागा अन्दर का इन्सान 
जरा समझिये और बताइये
क्या दो ही थे हैवान? 

लोग थे आसपास वहाँ
कोई फोन पर बतियाता हुआ
कोई वाहन चलाता हुआ
आखिर बेटी का कैसा था इम्तिहान
क्या दो ही थे वो हैवान?

हैवान तो वो भी हैं 
जिनका दूसरों से नाता नहीं
इन्सान होते वहाँ आसपास
ये सब उनसे देखा जाता नहीं
कोई तो आता बच जाती जान
क्या दो ही थे वो हैवान?

सूर्य मणि दूबे "सूर्य" - गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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