शरद पूर्णिमा महारास वाली - कविता - सुनीता रानी राठौर

शुक्ल पक्ष में आश्विन मास का पूर्णिमा,
कहलाती महारास वाली शरद पूर्णिमा।
आह्लादित है चटक चाँदनी चंद्र किरणें,
शीतल अमृत बरसाती है शरद पूर्णिमा।

सोलह श्रृंगार कर चाँदनी रति लुभावे,
कामदेव पर काबू कृष्ण कन्हैया पावे।
सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता चाँद,
गोपियों संग गोपाल कान्हा रास रचावे।

प्रेम की परिपूर्णता का प्रमाण है चाँद,
प्रेम के चरमोत्कर्ष शरद पूर्णिमा चाँद।
विजय प्राप्ति और अहंकार का नाश,
कामदेव पे काबू करने कृष्ण बने चाँद।

राधिका बनी चाँदनी कर सोलह श्रृंगार,
गोपियों के संग कान्हा विचरण विहार।
शरद पूर्णिमा को रसिक करे प्रेमालाप,
मंत्रमुग्ध हुए मन देख चंदा का आकार।

औषधीय अमृत बरसाता है आज चाँद,
सकारात्मक ऊर्जा से भर देता है चाँद।
ब्रह्मा संग जीव का मधुर मिलन होता,
आनंदमयी रास वाली पूर्णिमा का चाँद।

सुनीता रानी राठौर - ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश)

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