सूरज का अभिनंदन - कविता - मयंक कर्दम

आसमान भी तरस गया, 
कोयल की आवाज सुनने को। 
धरती में पानी से भीग गई,
कोयल के साथ गुनगुनाने को।।

कलियाँ भी खिल गई,
सूरज को मुख दिखलाने को।
खुशबू को पहुंचा दिया,
सूरज को पास बुलाने को।।

पूरब से दरवाजा तोड़, 
निकल आया अवतार वो। 
अंधेरे को पीछे छोड़ा,
लाया ऐसा चमत्कार वो।।

फूल भी झूम उठे, 
अपना करतब दिखाने को।
नदियाँ भी बहने लगी,
अपनी चाल समझाने को।।

गाकर गीत कोयल ने,
किया सूरज का बड़ा अभिनंदन। 
गीत-गाते लगा कोयल ने, 
 सूरज के माथे पर इक चंदन।।

बादलों में सवारी करके,
पहुंचा चांद भी गले लगाने को।
अंधेरे से बात पूरी कर,
खुश हुआ चांद-सूरज से बात बताने को।।

वर्षा भी दौड़ी आई, 
सूरज को अपने आंचल से भीगाने को। 
रुठा मौसम भी बहक गया, 
अपना सौंदर्य दिखाने को।। 

हवा भी संभल गई,
लोगों को उनका मार्ग दिखाने को।
पवनों में वो मिल गई,
उनका साहस बढ़ाने को।।

नया सवेरा भी चमक उठा,
अपना रंग दिखाने को।
नई किरणे लाया सूरज,
लोगों को कुछ सिखलाने को।। 

मयंक कर्दम - मेरठ (उत्तर प्रदेश)

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