डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली
विजय पर्व हो शान्ति का - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
शुक्रवार, अक्तूबर 30, 2020
परमारथ सुख शान्ति लोक में,
यश विजय दीप आलोक कहूँ।
विजयपर्व यह सत्य न्याय का,
दशहरा या रामराज्य कहूँ।
कलियुग के इस विकट काल में,
किसको रावण या मनुज कहूँ।
लोभ कपट मिथ्या इस जग में,
हिंसक दुष्कामी दनुज कहूँ।
महातिमिर फँस सत्ता मद में,
महिषासुर या सरकार कहूँ।
जाति धर्म भाषा विभेद में,
विभाजक दंगाई गरल कहूँ।
महाज्वाल नफ़रत बन जग में,
बड़वानल या साज़ीश कहूँ।
शुंभ निशुम्भ असुर घर घर में,
कामी नृशंस खूंखार कहूँ।
लंकेश्वर था निपुण नीति में,
ज्ञानवान शत्रुंजय मानूँ।
कामी था , पर नारी रक्षक,
इन्सान मनुज या दनुज कहूँ।
नीति प्रीति नित लीन कर्म में,
राजभक्त या रक्तबीज कहूँ।
खाते रहते गाते दुश्मन,
गद्दार राष्ट्र या द्रोह कहूँ।
रावण था शत्रुंजय जग में,
साधक महान शिवभक्त कहूँ।
देशभक्ति था तन रग रग में,
आजीवन पौरुष शक्ति कहूँ।
सत्कर्म धर्म इस कलि काल में,
अचरज विस्मय उपहास कहूँ।
कहँ ईमान सुकर्म पथिक अब,
नैतिकता बस बकवास कहूँ।
झूठ फ़रेबी घूसखोरी में,
रत नेता जनता चोर कहूँ।
बद्जुबान वे देशद्रोह में,
आतंक मीत या साथ कहूँ।
जननायक रावण लंका में,
प्रतिपालक या शौर्यवीर कहूँ।
कुंभकरण अरु मेघनाद सम,
बलिदान वतन या असुर कहूँ।
आन बान सम्मान राष्ट्र में,
अभिमान भक्ति को नमन करूँ।
जो पापी द्रोही कुल घातक,
उस राष्ट्र द्रोह का दमन करूँ।
जला रहे रावण वर्षों से,
खल पाप सिन्धु मन में मानूँ।
पर घर घर हिंसक कामातुर,
वतन द्रोह घातकी असुर कहूँ।
लूट रहे जन कोष राष्ट्र में,
लूटेरा या देशभक्त कहूँ।
नेता सत्ता अधिकारी पद,
रावण महिषासुर कंस कहूँ।
धन सत्ता पद अहंकार में,
चौथ नयन या वाचाल कहूँ।
विजय पर्व बन लोकतंत्र जय,
कल्पनातीत यथार्थ कहूँ।
विष अन्तर्मन आक्रोश हृदय,
क्या जन खुशियाँ मुस्कान कहूँ।
आर्तनाद बन चहुँ दावानल,
उत्थान विजय या हार कहूँ।
नाश करो सब रावण मानस,
तज काम लोभ मद मनुज कहूँ।
जब नार्यशक्ति सम्मान राष्ट्र,
नव प्रगति शान्ति नव विजय कहूँ।।
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