पछतावा था - कविता - कुन्दन पाटिल

प्रेम का भुत
जब उतरा था
कुछ कुछ होश
मुझे आया था
कुछ समझ भी
मेरी तब बढ़ी थी
यह तो प्रेम नहीं!
मुझे ऐसा लगा था
वासना लालसा का
आकर्षण मात्र था
किंतु तब तक तो
देर हो चुकी थी
सब कुछ मेरा
लुट चुका था
सम्भलने का वक्त भी 
नही बचा था
कुछ यदी था तो बस
घोर पछतावा था।।

कुन्दन पाटिल - देवास (मध्य प्रदेश)

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