संदेश
मान्यवर कांशीराम साहब जी - कविता - निशा राज अम्बेडकर
बड़ा ताकतवर था वो शक्श, जो अम्बेडकर को फिर से जिंदा कर गया!! बुद्ध, फुल्ले, शाहू, पेरियार, अम्बेडकर का सच्चा वारिस था वो, जो उनके अधूर…
नयी भोर नव आश मन - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नई भोर नव आश मन, नव अरुणिम आकाश। मिटे मनुज मन द्वेष तम, मधुरिम प्रीति प्रकाश।।१।। मार काट व्यभिचार चहुँ, जाति धर्म का खेल। फँसी सियास…
दाग़ यही अच्छे हैं - कविता - मोहम्मद मुमताज़ हसन
बेशरमी का जो कोठा है कहते उसे देश की शान है! होता 'संस्कृति' का चीरहरण दुःखी देश का सम्मान है! शर्म लगे कहने में 'अभिनेता&…
निर्गुण भजन - गीत - संजय राजभर "समित"
देख कठिन तमाशा रो दिया। हाय! दुर्लभ जीवन खो दिया।। लोकहित था मानव का धर्म, फिर भी क्यों नही समझा मर्म। निज पथ पर काँटे बो दिया। हाय! द…
पप्पू-गप्पू ने पछाड़ दिया - हास्य व्यंग्य (आलेख) - डॉ. अवधेश कुमार अवध
साहित्य विहीन सस्ते चुटकुले व जोक्स सामान्य जन को सदैव हँसने का अवसर देते रहे हैं। आज के साहित्य में हास्य खोजना, रूई के ढेर में सुई ख…
मैं कातिल हूँ - कविता - नीरज सिंह कर्दम
यह तो साफ हो चुका है कि इंसान की शक्ल चमचे जैसी ही नही होती है, दोनों हाथों में तलवार लिए लाल आँखे, शेर जैसी दहाड़ मारती हुई वो तस्वीर…
सियासत - ग़ज़ल - वरुण "विमला"
सियासत की वफादारी पे शक करना बुरी बात थोड़े है आज के लोगो की यारी पे शक करना बुरी बात थोड़े है साहिब-ए-मसनद की बातें ही पत्थर की लकीर, …
क़ब्र से - कविता - शिवम् यादव "हरफनमौला"
जब मैं जिंदा था तब मुझको, पानी तक ना दे पाए तुम। और आज क़ब्र पर मेरी, पानी देने आए हो तुम।। जब मैं जिंदा था तब मुझको, कभी खुश होकर मन स…
सीख अमिताभ बच्चन से - आलेख - अंकुर सिंह
बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ का जन्म 11 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (वर्तमान का प्रयागराज) जिले में हिंदी साहित्य के एक बड़ी हस्ती…
कहीं-कहीं पे - कविता - भागचन्द मीणा
मन बैचेन हो उठता है अनजान कहीं पे। सुकुन मानो गायब हो जाता है कहीं पे। शायद किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है मन वक्त जैसे ठहर जाता है कहीं…
जनमत समझो मंत्र - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जनता से सत्ता बनी, जनता से गणतन्त्र। जनता दे सत्तावनत, जनमत समझो मंत्र।।१।। करो प्रगति जनता सदा, चिन्तन जन कल्याण। निर्भय सम्बल जब प्…
वो बुढ़िया - कविता - सलिल सरोज
वो बुढ़िया कल भी अकेली थी, वो बुढ़िया अब भी अकेली है। चेहरे की झुर्रियाँ पढ़ कर पता चलता है, उसने कितने सदियों की पीड़ा झेली है। पति छोड़ …
मैं दीन - हीन लघु दीप एक - गीत - डॉ. अवधेश कुमार अवध
मैं दीन - हीन लघु दीप एक, थोड़ा - सा स्नेह प्रदान करो। रख दो गरीब की कुटिया में, उनकी रजनी भी जाग उठे। आँगन में कुछ खुशहाली हो, उनके …
जागरूकता - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
जागरूकता फैलाओ सभी, कर शुरू एक अभियान। देखो बढ़ी जागरुकता यदि, तभी बढ़ेगा निज अभिमान।। जागरूकता देती स्वस्थ पहचान, शुद्ध भोजन करे जीवन आ…
नारी सम्मान - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
नारी बेटी है बहन है, मां है, पत्नी है, नारी के विविध रूप हैं, रिश्ते हैं भारतीय संस्कृति में नारी की पूजा होती है। परंतु नारियों के …
स्वच्छ भारत - गीत - संजय राजभर "समित"
स्वस्थ भारत, सुयोग भारत ।। स्वच्छ भारत, निरोग भारत ।। हर मुखड़े पर मुस्कान हो ऐसी हवा का वितान हो, तन-मन झूमे, लोग भारत । स्वच्छ …
दोस्ती - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
साथियो दोस्ती में एक दुसरे के लिए मर मिट जाना है, न भेद-भाव हो संयम हो समर्पित हो जाना है। स्वार्थ को छोड़ो और छोड़ो पराया पन, …
मौन - कविता - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"
आवाज नहीं कोई रहा उठा, है किसी के साथ नहीं घटा? यह समाज भी सह रहा सभी , बेटियां बहुएं सुरक्षित नहीं।। मनुष्यता अब खो गई कहीं, भीष्म से…
फूल-सी कलियों को खिलने दो - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"
अभी-अभी तो यह खिली है, बहुत ही कच्ची कली है, ना छेड़ो तुम, इन्हेंं निकलने दो, फूल-सी कलियों को खिलने दो। यह सुंदर रूप में खिलेगी, र…
होम आइसोलेशन - व्यंग्य (कथा) - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
भाई जांच करो और साथ में वह भी अंग्रेजी में खरी खोटी मिल जाए तो भला मोबाइल नंबरों का क्या दोष ?और वह भी स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारिय…
नारी बोल रही हैं - कविता - आशाराम मीणा
उगता सूरज लज्जत रहा है, भारत के अपमान में। घोर अंधेरा चिपक रहा है, चंदा के अरमान में।। धरती माता सिसक रही है, वीरों के बलिदान में। निर…
इन्तज़ार ए मुहब्बत - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
तुम्हारा इन्तज़ार और बेशुमार हसरतें, बीते कितने वासन्तिक और मधुश्रावण प्रिये। जलती रही दावानल व…
बेबस बहुजन बेटी - कविता - प्रीति बौद्ध
उमंग भरा मन था तेरा, उजला सा तन था तेरा।। कोमल कली थी बहुजनों की, उम्मीद लिए सुंदर जीवन की। प्रिय थी तुम सब जन की, खिल रहा था यो मन …
नारी तेरे कितने रूप - कविता - बजरंगी लाल
हे! नारी तुम रखती हो निज कितने ही रूप, सृष्टि में जो कुछ दिखता है सब है तेरा स्वरूप, तेरे बिना जग तिमिरयुक्त है दिखे कहीं ना धूप, तेरे…
परहित परम धर्म है बंधु - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
फेंक दिया बेकार समझ एक टुकड़ा वो रोटी का कोई तरसता है उसको कूड़े से उठा कर खाने को, माना की अमीरी का आलम सर पर चढ़ कर है खेल रहा जरा …
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