फूल-सी कलियों को खिलने दो - कविता - कानाराम पारीक "कल्याण"

अभी-अभी तो यह खिली है,
बहुत  ही  कच्ची  कली  है,
ना छेड़ो तुम, इन्हेंं निकलने दो,
फूल-सी कलियों को खिलने दो।

यह सुंदर रूप में खिलेगी,
रोशनी आंगन में बिखरेगी,
ना तोड़ो इन्हेंं, अभी खुलने दो,
फूल-सी कलियों को खिलने दो।

चाँद की चाँदनी ज्यो चमकेगी,
घर बाहर चौबारे को महकेगी,
ना फैंको इन्हें, अभी महकने दो,
फूल-सी कलियों को खिलने दो।

घर की  सुंदरता  जो बढ़ेगी,
उदास चेहरों को मुस्काएगी,
ना मरोड़ों इन्हें, अभी मुस्काने दो,
फूल-सी कलियों को खिलने दो।

सुने घर में सरगम सुनाएगी,
बूढ़े-बड़ों का लाड़ लड़ाएगी,
ना दबोचो इन्हें, लाड़ लड़वाने दो,
फूल-सी कलियों को खिलने दो।

कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)

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