नारी तेरे कितने रूप - कविता - बजरंगी लाल

हे! नारी तुम रखती हो निज कितने ही रूप,
सृष्टि में जो कुछ दिखता है सब है तेरा स्वरूप,
तेरे बिना जग तिमिरयुक्त है दिखे कहीं ना धूप,
तेरे ममतामयी करों से निखरा जग का रूप।

माता बनकर सृष्टि सजाती देती सबको नेह,
तेरे बिना जग सूना-सूना, सूना लगता गेह,
तूँ ना होती है जिस घर में होता सब वीरान,
तेरे कदम पड़ जाएं घर में बढ़ जाती है शान।

नारी तूँ है शक्ति-स्वरूपा सभी गुणों की खान,
अम्बे, गौरी, श्री, शारदा सब तुझमें विद्यमान,
तेरे चरण की पूजा करते ब्रह्मा, विष्णु महान,  
तेरे प्यार में तांडव करते हैं शंकर भगवान।

जननी, सुता, भगिनी, भार्या, माँ अम्बे का रूप,
सबको तुमने जना है चाहे राजा, रंक या भूप,
तेरे प्यार की छाया में ही पाया सबने रूप,
जो भी दिखता है इस सृष्टि में सब है तेरा स्वरूप।

हे! नारी तुम रखती हो निज कितने ही रूप,
जननी, सुता, भगिनी, भार्या, माँ अम्बे का स्वरूप।।

बजरंगी लाल - दीदारगंज, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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