संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
निर्गुण भजन - गीत - संजय राजभर "समित"
सोमवार, अक्टूबर 12, 2020
देख कठिन तमाशा रो दिया।
हाय! दुर्लभ जीवन खो दिया।।
लोकहित था मानव का धर्म,
फिर भी क्यों नही समझा मर्म।
निज पथ पर काँटे बो दिया।
हाय! दुर्लभ जीवन खो दिया।।
कागज के टुकड़ों पर दौड़ा,
संतोष परम धन को छोड़ा।
कम रहा क्यों जो कुछ वो दिया
हाय! दुर्लभ जीवन खो दिया।।
अंतर में ईर्ष्या द्वेष लिए,
सफेद चादर छल वेष किए।
ले पाप की गठरी ढो दिया।
हाय! दुर्लभ जीवन खो दिया।।
चला चली का बेला आई,
मेरे हाथ मैं कुछ न आई।
समय नित दिन माया को दिया।
हाय! दुर्लभ जीवन खो दिया।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर