होम आइसोलेशन - व्यंग्य (कथा) - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

भाई जांच करो और साथ में वह भी अंग्रेजी में खरी खोटी मिल जाए तो भला मोबाइल नंबरों का क्या दोष ?और वह भी स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों की बीती रातें रातें खरी-खोटी सुनने में जा रही हैं।

यह बातें तो सोने पर सुहागा जागरूकता का बंटाधार किए हैं, स्वास्थ्य कर्मियों की हालत तो पीपीआई किडनी मूंग की दाल बनी जा रही है, जान-माल की रक्षा में सोने की अंडा देने वाली मुर्गियों की खोज चल रही है। प्राइवेट तौर पर मोटा दाना डालकर सेवाओं में अस्पताल में जांच धड़ल्ले से नेगेटिव - पॉजिटिव का खेल जारी है, मोटा बिल थमा मरीजों की जांच सेवा जारी है कोरोना कंट्रोल रूम से स्वास्थ्य अधिकारी भी हलकान हैं हाल-चाल तो मिला नहीं परंतु अंग्रेजी में खरी खोटी सुन स्वाभिमान पर आंच अब जारी है।

सारे सब्र की बांध और हदे तो तब पार हुई भई  जब हम खुद के डॉक्टर खुद बने वह भी झोलाछाप नंबर वन मोहल्ले के, रोग प्रतिरोधक क्षमता तो बढ़ी नहीं  पर बैठा बैठा है ब्लड प्रेशर के मरीज जरूर बन गए। खुद का नंबर वन डॉक्टर वाला हल्दी मिर्चा धनिया पानी में घोलकर उबालकर सूप पीना सलाह देना बाकी है, जागरूकता चरम सीमा पर है मास्क नाक पर नहीं गले का चंद्रहार बना है एंबुलेंस खड़ी है बाहर अंदर कोरोना मुक्ति के लिए नहान खान दान और कपड़े का रंग का चुनाव अभी आते हैं थोड़ा शॉपिंग करके और स्वास्थ्य कर्मियों की दया है और धैर्य भी, स्वास्थ्य कर्मियों की जो दया की मुद्रा में अभी तक विराजमान है, जो साधारण सर्दी-जुकाम में भी इंफेक्शन को इंजेक्शन दिखा जो रोग को दी नौ दो ग्यारह कर देते हैं अब आइसोलेशन संग जंग कोरोना से दो-दो हाथ और खरी खरी भी जारी है, कोरोना का बंटाधार कर जागरूक पर पूरा प्लान जंग जीतने का कोरोना मुक्ति अभियान जारी है ।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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