नारी बोल रही हैं - कविता - आशाराम मीणा

उगता सूरज लज्जत रहा है, भारत के अपमान में।
घोर अंधेरा चिपक रहा है, चंदा के अरमान में।।
धरती माता सिसक रही है, वीरों के बलिदान में।
निर्मम हत्या गैंगरेप क्यों, जीवत है  मुल्तान में।।
जिंदा जला दिया नारी को भारत के श्मशान में।।।

सात समुंदर पार कर, नारी ने मान बढ़ाया था।
पुरुष प्रधान समाज में, कंधा संग  कटवाया था।।
कूद पड़ी थी रण में, गोरो को मजा चखाया था।
सती हो गई सखियों के संग, जोहर के सम्मान में।।
जिंदा जला दिया नारी को भारत के श्मशान में।।।

हक नहीं मिला है उसको, भारत के संविधान का।
इतिहास नहीं पढ़ा जाता, प्राणों के बलिदान का।।
संगत रूप नहीं मिला है, पन्ना की पहचान का।
महिला अबला बनी हुई है, अपने  हिंदुस्तान में।।
जिंदा जला दिया नारी को भारत के श्मशान में।।।

आशाराम मीणा - कोटा (राजस्थान)

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