आशाराम मीणा - कोटा (राजस्थान)
नारी बोल रही हैं - कविता - आशाराम मीणा
शुक्रवार, अक्तूबर 09, 2020
उगता सूरज लज्जत रहा है, भारत के अपमान में।
घोर अंधेरा चिपक रहा है, चंदा के अरमान में।।
धरती माता सिसक रही है, वीरों के बलिदान में।
निर्मम हत्या गैंगरेप क्यों, जीवत है मुल्तान में।।
जिंदा जला दिया नारी को भारत के श्मशान में।।।
सात समुंदर पार कर, नारी ने मान बढ़ाया था।
पुरुष प्रधान समाज में, कंधा संग कटवाया था।।
कूद पड़ी थी रण में, गोरो को मजा चखाया था।
सती हो गई सखियों के संग, जोहर के सम्मान में।।
जिंदा जला दिया नारी को भारत के श्मशान में।।।
हक नहीं मिला है उसको, भारत के संविधान का।
इतिहास नहीं पढ़ा जाता, प्राणों के बलिदान का।।
संगत रूप नहीं मिला है, पन्ना की पहचान का।
महिला अबला बनी हुई है, अपने हिंदुस्तान में।।
जिंदा जला दिया नारी को भारत के श्मशान में।।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर