बेबस बहुजन बेटी - कविता - प्रीति बौद्ध

उमंग भरा मन था तेरा,
उजला सा तन था तेरा।।

कोमल कली थी बहुजनों की,
उम्मीद लिए सुंदर जीवन की।
प्रिय थी तुम सब जन की,
खिल रहा था  यो  मन तेरा।
उमंग भरा था मन तेरा,
उजला सा था तन तेरा।।

घर से तुम निकली थी,
किस मनहूस घड़ी में बिटिया?
नरभक्षीयों में फंस गई बिटिया?
दरिंदों ने कर दिया बेवस बिटिया,
निहत्था और बेबस तन था तेरा।
उमंग भरा मन था तेरा,
उजला सा तन था तेरा।।

हत्यारों ने हड्डियां तोड़ जीभ काट दी,
जिंदगी तेरी नर्क में झोंक दी।
काश! तेरे हाथ में होती फूलन की बंदूक,
तेरी गोलियां उड़ा देती इन दरिंदों का चेहरा।
उमंग भरा मन था तेरा,
उजला सा तन था तेरा।।

कहाँ चले गए शासन प्रशासन,
बेटी बचाओ का जो देते भाषण।
क्यों नहीं कोई कुछ है करता?
मर गए हैं यहाँ के शासनकर्ता,
वोट लेते हो  तो बदले में सभी।।
बेटियों की आबरू का करो पहरा।
उमंग भरा मन था तेरा,
उजला सा तन था तेरा।।

प्रीति बौद्ध - फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश)

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