संदेश
करवटें बदलते ये मौसम - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
तुनकमिजाजी ये मौसम, रूप बदलते सतत अपने बहुरूपिये की तरह हर पल, मनमौजी, बेपरवाह जग, कभी सूर्यातप गर्माहट , बरसाते लू का कहर बन…
चेहरे चेहरे कितने चेहरे - कविता - सुनीता रानी राठौर
देखते हैं हर तरफ अनेकों चेहरे, पढ़ पाते बनावटी किसके चेहरे? दिखते कभी बारह- बजते चेहरे, कभी हसीं वादियों से खिले चेहरे। भलेमान…
दुनिया के रखवाले - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
दुनिया के रखवाले तुझ पर , अर्पण मेरा तन मन धन । तू दाता है परमपिता है , तू ही जीवन और मरन । नजरें कभी न फेरो हे! प्रभु , इतनी…
मैं और मेरा द्वंद - कविता - कपिलदेव आर्य
मैं मार देता हूँ ख़ुदग़र्ज़ी के हज़ारों कीड़े, उखाड़ देता हूँ मक़्क़ारी की ख़रपतवार । मैं कुचल देता हूँ हवशी ज़हरीले कीटाणु , हट…
गरीब की व्यथा - कविता - मधुस्मिता सेनापति
जीते हैं हम गरीबी में सोते हैं हम फुटपाथों पर खाने के लिए, दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती, फिर भी रहते हैं हम टूटे हुए अध- जले …
बेसिक शिक्षा में योग शिक्षा - आलेख - प्रशांत अवस्थी
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में स्वस्थ रहना एक चुनौती बनता जा रहा है। योग स्वास्थ्य लाभ करने की एक विधि अर्थात क्रिया है। कठिन से कठ…
कृष्ण महिमा - कविता - बजरंगी लाल
मटकी फोरत, माखन छोरत, गोपिन करत ठिठोली रे। राधा रानी सो रास रचावत, हिया करत मोरा चोरी रे।। गैया चरावत वंशी बजावत, सबकर दिल हरस…
दो भगण दो गुरु - गीत - संजय राजभर "समित"
गीत लिखें लय प्यारा। भारत देश हमारा।। है सबसे यह न्यारा। भारत देश हमारा।। जीवन पद्…
माँ-पिता - कविता - कपिलदेव आर्य
वो कहते हैं कि मेरे चेहरे पर तेज़ भरपूर है, और मैं कहता हूँ, मेरे माता-पिता का नूर है! उन्हीं की दुआओं से चमकते हैं सितारे मेरे, …
नेमत ए ज़िन्दगी - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
ये ज़िंदगी खुदा की नेमत है। इसे जीे लेने की जरूरत है। ग़म व खुशी के पल में जियें, ये धूप छाँव ही तो दौलत है। जब तक जिये अपना ब…
समय - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
यह बात सत्य है कि जो समय के साथ चलता है वह अपनी जिंदगी में सब कुछ हासिल कर लेता है। भारतीय उक्ति भी यही है कि शुभ काम में देरी ठी…
मधुरिम वेला भोर की - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मधुरिम वेला भोर की, हो सबका कल्याण। सुख वैभव आरोग्यता, सभी दुखों से त्राण।।१।। निर्मल शीतल नव किरण, भरे मनुज उत्साह। मति विवेक …
फूल तुम ग़ज़ब हो - कविता - मधुस्मिता सेनापति
फूल तुम फैलाकर अपनी सुगंध मादकता का सृजन करते हो। रंग बिरंगी दुनिया में सपनों के उपवन तुम सजाते हो। कभी तुम सभी के हृदय की शोभ…
प्यार का मौसम आ गया - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
आओ के प्यार का मौसम आ गया, बारिश-ए-बहार का मौसम आ गया! फ़ज़ा में बिखरी है खुशबू-ए- मिट्टी, गुल-ए-गुलज़ार का मौसम आ गया! नए पत्तों…
तन्हा हो गया हूँ - कविता - शेखर कुमार रंजन
दुख हो या सुख दोनों को ही, अपनों में बाँट लिया करते थे बड़ो का हमेशा इज्जत करते, बदले में प्यार लिया करते थे। मन ना मलिन था तब, …
शर्मसार करता है - ग़ज़ल - आलोक कौशिक
मानव ही मानवता को शर्मसार करता है साँप डसने से क्या कभी इंकार करता है उसको भी सज़ा दो गुनहगार तो वह भी है जो ज़ुबां और आँखों से …
योद्धा - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
कोरोना युद्ध में हमारे स्वास्थ्य कर्मियों का अमिट योगदान है। सीमा पर सेना के जवान अपने शौर्य के झंडे गाड़ रहे हैं, कर्तव्य की ब…
फिर वही प्यार दो - कविता - रवि शंकर साह
दिल में दर्द उठ रहा, याद तुम्हें कर रहा। दिल की पुकार सुन। तुम फिर आवाज दो। प्यार की आवाज पर बाँह तुम पसार दो। फिर वही दुलार …
मुरझाये फिर कुछ कुसुम - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जिसने दी जीवन मुझको, दान किया निज प्राण। जीवन उसका धन्य है, करे राष्ट्र कल्याण।।१।। आज हुआ जीवन सफल , देकर निज बलिदान।…
चिंता का हल ऐसे करें - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
यूँ तो चिंता एक मानवीय गुण है यह ऐसा संवेग है जिससे होकर हर मनुष्य को गुजरना ही पड़ता है, किसी को ज्यादा तो किसी को कम। अब यह व्य…
बुढ़ापा - कविता - ममता शर्मा "अंचल"
सुबह सुबह किसी ने द्वार खटखटाया, मैं लपककर आया, जैसे ही दरवाजा खोला तो सामने बुढ़ापा खड़ा था, भीतर आने के लिए, जिद पर अड़ा …
जीवन का आयाम - कविता - मधुस्मिता सेनापति
जो आज है वो कल तक न रुकेगा। जो अब हैं साथ में वह कल तक न रहेगा। जो आज मुस्कुरा रहा है उसे कल दर्द को पालना होगा। सफलता पाने क…
गोधूलि - कविता - राजीव कुमार
ढलती शाम चिड़ियों का घोंसलों की तरफ लौटना । डूबता हुआ सूरज पड़ती लाल किरण नदी का रक्ताभ पानी लंगर मे हिलाती नाव । …
तरक्क़ी ले रही कुर्बानियां साए की - ग़ज़ल - मोहम्मद मुमताज़ हसन
दिल्लगी का मुझे भी हुनर आ गया! बेख़बर था जो बाख़बर आ गया! तरक़्क़ी ले रही कुर्बानियां साये की, ज़द में आज कोई शजर आ गया! जिधर द…
इक मुलाक़ात की - ग़ज़ल - रेणु त्रिवेदी मिश्रा
तुम्हारी मेरी इक मुलाक़ात की चलो बात करते हैं उस रात की बड़ी बेखबर थी नहीं थी ख़बर न हालात की और न जज़्बात की बरसती रही थी मुसलसल…
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