मुरझाये फिर कुछ कुसुम - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

जिसने दी जीवन मुझको, दान किया निज प्राण।
जीवन   उसका    धन्य   है, करे   राष्ट्र  कल्याण।।१।।

आज  हुआ जीवन सफल , देकर निज बलिदान।
लाज   रखी    माँ  भारती , जिसका था अहसान।।२।। 

नित    भारत   के  मान  में , जन्म  धरा सौ बार।
रक्षा   करता    निज वतन ,  मरूँ    जन्म उद्धार।।३।।

ध्वजा    तिरंगा  शान में , शत शत   दूँ  बलिदान।
वीरगति     पाना    कठिन , शत्रु    दमन सम्मान।।४।।

पुनः   चुकाया   ऋण  वतन , जीत शत्रु दी ज़ान।
अमन    सुरक्षा   राष्ट्र  की , था   जीवन अरमान।।५।।

स्वीकारो   अंतिम   नमन , धीर   वीर   माँ   पूत।
क्षमा     करो   माँ   भारती , भूल  चूक जो भूत।।६।।

धन्य   धन्य   मैं   जा  रहा , अमरगीत  बन  देश। 
सदा   सुरक्षित   राष्ट्र   हो , प्राण   दान    संदेश।।७।। 

रोना    मत   जन मन  वतन , जीया मैं  परमार्थ।
अवसर   पा   रक्षा वतन , न्यौछावर  तज स्वार्थ।।८।।

याद     रखो   कुर्बानियाँ , भारत    माँ   सम्मान। 
जीओ   जीवन   राष्ट्र   हित , देशभक्ति  पहचान।।९।।

श्रद्धाञ्जलि  सादर  नमन , कविरा भाव विभोर। 
मुरझाये   कुछ  फिर कुसुम, भारत माँ चितचोर।।१०।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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